मंडी हो या बाजार हर कदम पर किसान ठगे जाते हैं. नेतागण किसानों के लिए सिर्फ घडि़याली आंसू बहाते हैं, क्योंकि उन्हें किसानों के वोट लेने होते हैं. असल में किसान अपनी परेशानियों से तंग रहते हैं. जब तक उन के बस में होता है तब तक वे हर किस्म की मार सहते हैं. कई बार खुद जान गवां देते हैं, लेकिन ठगने, लूटने व सताने वालों की जान नहीं लेते. खेती से होने वाली कमाई बढ़ाने के सरकारी हथियार भोथरे हैं. किसानों से जुड़ी यह जमीनी हकीकत ओहदेदारों को नजर नहीं आती. लिहाजा किसानों के हालात नहीं सुधरते. प्रधानमंत्री ने किसानों की खातिर ठोस स्कीमें चलाने की हिदायत दी थी, लेकिन मातहत नहीं मानते. जब रसोईगैस की छूट खातों में जाने लगी, तो खाद की छूट किसानों के खातों में क्यों नहीं भेजी जाती? गन्नाकिसानों का बकाया क्यों नहीं मिल रहा? ऐसे और भी कई मामले हैं.
बरबादी की वजहें
गरीबी : साल 2014 के दौरान खुदकुशी करने वालों में 70 फीसदी की माली हालत कमजोर थी. नई तकनीकें गरीबी दूर करने में कामयाब हैं, लेकिन तालीम, जानकारी व जागरूकता की कमी से किसानों की आमदनी कम है. ऊपर से कम उपज, मंडी में लूट व उपज के वाजिब दाम न मिलने से ज्यादातर किसान तंगहाल रहते हैं.
कर्ज : रोटी, कपड़ा, मकान व खेती की जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान सिर से पांव तक कर्ज में डूबे रहते हैं. वक्त पर कर्ज की अदायगी नहीं हो पाती और?ब्याज का बोझ बढ़ता रहता है. कई राज्यों में किसान कपास जैसी फसलों को बचाने के लिए महंगे कीटनाशक कर्ज ले कर खरीदते हैं, लेकिन नकली दवाओं से कीड़े नहीं मरते.
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