सफेद मूसली एक बहुत ही उपयोगी पौधा है, जो कुदरती तौर पर बरसात के मौसम में जंगल में उगता है. इस की उपयोगिता को देखते हुए इस की कारोबारी खेती भी की जाती है. सफेद मूसली की कारोबारी खेती करने वाले राज्य हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, ओडिशा, तमिलनाडु, केरल व वेस्ट बंगाल वगैरह हैं. सफेद मूसली की जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक और यूनानी दवाएं बनाने में किया जाता है. खासतौर पर इस का इस्तेमाल सेक्स कूवत बढ़ाने वाली दवा के तौर पर किया जाता है. सफेद मूसली की सूखी जड़ों का इस्तेमाल यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं बनाने में करते हैं. इस की इसी खासीयत के चलते इस की मांग पूरे साल खूब बनी रहती है, जिस का अच्छा दाम भी मिलता है.

सफेद मूसली में खास तरह के तत्त्व सेपोनिन और सेपोजिनिन पाए जाते हैं और इन्हीं तत्त्वों की वजह से ही सफेद मूसली एक औषधीय पौधा कहलाता है. सफेद मूसली एक सालाना पौधा है, जिस की ऊंचाई तकरीबन 40-50 सेंटीमीटर तक होती है और जमीन में घुसी मांसल जड़ों की लंबाई 8-10 सेंटीमीटर तक होती है. यौवनवर्धक, शक्तिवर्धक और वीर्यवर्धक दवाएं सफेद मूसली की जड़ों से ही बनती हैं. तैयार जड़ें भूरे रंग की हो जाती हैं. सफेद मूसली की खेती के लिए गरम जलवायु वाले इलाके, जहां औसत सालाना बारिश 60 से 115 सेंटीमीटर तक होती हो मुनासिब माने जाते हैं. इस के लिए  दोमट, रेतीली दोमट, लाल दोमट और कपास वाली लाल मिट्टी जिस में जीवाश्म काफी मात्रा में हों, अच्छी मानी जाती है. उम्दा क्वालिटी की जड़ों को हासिल करने के लिए खेत की मिट्टी का पीएच मान 7.5 तक ठीक रहता है. ज्यादा पीएच यानी 8 पीएच से ज्यादा वैल्यू वाले खेत में सफेद मूसली की खेती नहीं करनी चहिए. सफेद मूसली के लिए ऐसे खेतों का चुनाव न करें, जिन में कैल्शियम कार्बोनेट की मात्रा ज्यादा हो.

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