हमारे यहां कई गंवई इलाकों में पशुपालन खेती के साथसाथ किया जाने वाला काम है. कुछ लोग अपनी घरेलू जरूरतों को ध्यान में रखते हुए ही पशुपालन करते हैं, वहीं कुछ ऐसे भी हैं जिन्होंने पशुपालन को बतौर डेरी कारोबार के रूप में अपनाया हुआ है.

यही डेरी कारोबार उन की आमदनी का एकमात्र जरीया है. लेकिन किसी भी काम को करने के लिए उस के बारे में सटीक जानकारी हो तो कारोबार मुनाफे का सौदा बनता है. कई दफा जानकारी की कमी में कारोबार करने वालों को नुकसान उठाना पड़ता है, इसलिए पशुपालन में पशुओं का रखरखाव, उन के खानपान में चारा, पानी वगैरह देने के अलावा घरेलू उपचार की सही जानकारी होनी चाहिए.

नया डेरी फार्म लगाने के लिए पहले या दूसरे ब्यांत के पशु जो कि ज्यादा से ज्यादा 20 या 25 दिन की ब्याई हुई ही खरीदनी चाहिए, क्योंकि ऐसे पशु अधिक समय तक दूध देते हैं.

इस के अलावा पशुओं की हर अवस्था जैसे गर्भकाल, प्रसवकाल और दूध काल वगैरह में समुचित देखभाल और प्रबंधन से ही किसी भी डेरी फार्म या डेरी उद्योग को कामयाब बनाया जा सकता है.

गांवों में पशुओं की देखभाल व खानपान, प्रबंधन का काम ज्यादातर महिलाएं ही करती हैं. इसलिए यह जरूरी भी है कि समयसमय पर महिलाओं को पशुओं की देखभाल और प्रबंधन के बारे में तकनीकी जानकारी प्रशिक्षण के माध्यम से देनी चाहिए ताकि पशु से ज्यादा से ज्यादा दूध ले सकें.

केंद्र सरकार द्वारा भी किसानों और पशुपालकों के लिए अनेक हितकारी योजनाएं समयसमय पर आती रहती हैं, उन की जानकारी ले कर भी फायदा उठाना चाहिए. इस तरह की जानकारी अखबारों, पत्रपत्रिकाओं, रेडियो, टीवी और कृषि विभागों द्वारा दी जाती है.

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