सफेद मक्खी के प्रकोप से नरमा फसल तबाह

भिवानी (हरियाणा) : सूबे के किसानों की कपास की फसल पर सफेद मक्खी ने कहर बरपा रखा है. इन सफेद मक्खियों पर दवाओं का असर भी बेअसर हो रहा है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इस बार इन सफेद मक्खियों का प्रकोप नहीं थमा तो इस का असर अगले वर्ष भी रहेगा. दूसरी तरफ नरमा किसान फसल के नुकसान की भरपाई के लिए सरकार से मुआवजे की मांग को ले कर उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं. किसानों का कहना है कि 1 एकड़ में नरमा फसल पैदा करने में 30-35 हजार रुपए का खर्च होता है. ऐसे हालात में फसल बरबादी के मुहाने पर है और सरकार चुप है. कृषि विभाग और सरकार को फसल में हुए नुकसान की भरपाई करनी चाहिए. वहीं प्रदेश के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ का कहना है कि किसानों का कहना सही है. सरकार इस मामले को ले कर चिंतित है और इस के लिए जरूरी कदम उठाए जा रहे हैं. कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अकेले भिवानी जिले में 62 हजार 700 हेक्टेयर भूमिपर कपास की बिजाई की गई है. उन का यह भी कहना है कि पिछले साल भी सफेद मक्खी ने नरमा फसल को नुकसान पहुंचाया था और इस बार भी सफेद मक्खी कहर बरपा रही है. तकरीबन 30 फीसदी नुकसान अब तक हो चुका है.

इस बारे में माहिरों का कहना है कि किसान अपनी फसल पर सफेद मक्खी से बचाव के लिए 2-3 बार दवाओं का स्प्रे कर चुके हैं, लेकिन फायदा नहीं हुआ. फसल चौपट हुई जा रही है. ऐसी हालत में बेहतर होगा कि किसान महंगे कीटनाशकों की बजाय डेमोथेरट्स, रोगोर या मेटासिसटोन को नीम की दवा के साथ मिला कर फसल पर स्प्रे करें. उन्होंने बताया कि यह सफेद मक्खी एक बार में सौ से सवा सौ अंडे देती है. यह तेजी से फसल को नुकसान पहुंचाती है. अगर कीटनाशक दवाओं से सफेद मक्खी की रोकथाम न की गई तो फसल को काफी नुकसान होगा. सफेद मक्खी के प्रकोप से फसल के पत्तों पर काला पाउडर जमा हो जाता है, नतीजतन पत्ते काले हो कर खराब होने लगते हैं, पौधों की बढ़वार रुक जाती है और फल भी कम आते हैं. इसलिए सफेद मक्खी से फसल का बचाव करने में किसान लापरवाही न करें.    

जरूरी है परंपरागत बीजों की हिफाजत

छत्तीसगढ़ : यदि हमें अपना स्वास्थ्य और खानपान ठीक रखना है तो खेती के क्षेत्र में भी सुधार करना जरूरी है लिहाजा हमें अच्छी फसल लेने के लिए परंपरागत बीजों को बचाना होगा और उन में सुधार करना होगा ऐसा ही एक कार्यक्रम छत्तीसगढ़ के जिला बिलासपुर में जन स्वास्थ्य सहयोग ने शुरू कर रखा है. वहां के गनियारी गांव में भी कृषि सुधार कार्यक्रम तकरीबन 1 दशक से चल रहा?है. इस कार्यक्रम के मुखिया होमप्रकाश बताते?हैं कि इस कार्यक्रम में धान की 405 किस्में, अरहर व मंडुआ की 6 किस्में और गेहूं की 16 किस्में शामिल हैं. धान की 405 किस्मों में तकरीबन 50 किस्में ऐसी हैं जिन की स्थानीय किसानों में काफी मांग?है. इन किस्मों को खासतौर पर मुहैया कराया जाता है.

यहां बीज पूरी तरह से जैविक तरीकों से तैयार किए जाते?हैं. इन में रासायनिक खाद व कीटनाशक दवाओं का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया जाता है, जिस से अच्छी क्वालिटी की फसल और बीज मिलते?हैं. यह तकनीक सस्ती होती?है, जिस से किसानों को कर्ज लेने की जरूरत नहीं पड़ती. इस तकनीक से मिट्टी में पोषक तत्त्वों की कमी दूर होती?है और पानी भी बहुत कम खर्च होता?है. होमप्रकाश आगे बताते?हैं कि यहां एसआरआई तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है, जिस में 1 एकड़ में इस्तेमाल होने वाले बीज की मात्रा जो तकरीबन 40 किलोग्राम होती है, घट कर 2 से 3 किलोग्राम ही रह जाती?है. एक पौधे से दूसरे पौधे की दूरी सभी दिशाओं में 10 इंच रखी जाती?है. पौधों की कम संख्या होने से हर पौधे को जमीन से सही पोषक तत्त्व मिल जाते?हैं. इस तकनीक में 10-12 दिनों की पौध की रोपाई की जाती?है. रोपाई के बाद 15 दिनों के अंदर निराई की जाती?है. खेत में नमी का भी खास ध्यान रखा जाता?है. खेत को पानी से पूरा भरने की जरूरत नहीं है. फूल निकलने के समय 2 से 4 इंच पानी बनाए रखने की जरूरत होती है. फसल में 2 बार जीवनामृत का छिड़काव करना चाहिए. जीवनामृत गोमूत्र, गोबर, गुड़ और बेसन से तैयार होता?है.

इस मिश्रण को 5 दिन रखने के बाद पानी में घोल कर फसल में छिड़काव किया जाता?है. पहला छिड़काव निराई के समय और दूसरा उस के 20-25 दिनों के बाद किया जाता?है. इस छिड़काव के बाद आमतौर पर कीड़ों और बीमारियों का खतरा नहीं रहता?है. होमप्रकाश का कहना?है कि जहां लगभग 10 महीने हम अपने इस्तेमाल की फसलें उगाते?हैं, वहीं करीब 2 महीने हमें जमीन के पोषण के लिए भी रखने चाहिए. मिट्टी के पोषण के लिए तरहतरह के अनाजों, दलहनतिलहन व अन्य उपयोगी पौधों को उगा कर मिट्टी में हरी खाद के रूप में जोत देना चाहिए. इस तरह मिट्टी का कुदरती उपजाऊपन बना रहता?है. इस साल परंपरागत खाद्य व पोषण उत्सव ‘जेवनार’ का आयोजन जन स्वास्थ्य सहयोग द्वारा किया गया. इस आयोजन के मुखिया अनिल बामने ने बताया कि जेवनार में भाग लेने वाले हर स्वयं सहायता समूह को अपनी पसंद के परंपरागत पकवान मिल कर पकाने और खानेखिलाने के लिए बुलाया गया. इस आयोजन का मकसद अपने कृषि खाद्य व पोषण ज्ञान को अच्छे तरीके से जाननासमझना?है, ताकि नई पीढ़ी उस को समझ कर उस की हिफाजत कर सके. अनिल ने बताया कि उत्सव के दिन गांववासियों खासकर महिलाओं में बहुत जोश था. लोग अपनेअपने गांवों से तरहतरह की पकवान बनाने की सामग्री ले कर रात को ही आयोजन की जगह पर पहुंचने लगे थे, ताकि सुबह खाना पकाने का काम जल्दी शुरू किया जा सके.

सुबह 10 बजे तक ज्यादातर समूहों ने तरहतरह की लजीज खानेपीने की चीजें तैयार कर ली थीं. करीब 40 तरह के पकवान इस उत्सव में तैयार किए गए थे. सभी लोगों ने एकदूसरे द्वारा तैयार की गई खानेपीने की चीजों का जायका लिया और उन के बारे में एकदूसरे को जानकारी दी. उत्सव में महुए से तैयार किए गए पकवानों की खास चर्चा रही. ऐसे पकवानों में महुए की पूरी, लड्डू और सब्जी खास थे. चने के साथ मिला कर पकाई गई महुए की सब्जी को लोगों ने बहुत पसंद किया. इस के अलावा सेम के बीज के साथ पकाया गया महुए का लाटा भी चर्चा का विषय रहा. महुए के मीठे और तीखे पकौड़ों को भी लोगों ने बहुत पसंद किया. इसी तरह तमाम कंदों, हरे पत्तों व बांस के पौधों से बनने वाली सब्जियों के बारे में भी लोगों को काफी जानकारी मिली. जेवनार से लौटते वक्त तमाम गांववासियों का कहना था कि ऐसे उत्सव साल में कम से कम 1 बार तो जरूर होने चाहिए.            

हिफाजत

सुरक्षा के लिए जैविक मेहंदी बाड़

हैदराबाद : जंगली जानवरों से फसल सुरक्षा के लिए एक ऐसी जैव तकनीक आई है, जो पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल है. इस तकनीक का नाम ‘मेहंदी जैव बाड़’ है. यह फसल सुरक्षा के लिए एक प्रभावी उपाय है. एस कुमार के कृषि व्यापार निगम के द्वारा इस तकनीक को ईजाद किया गया है जो हैदराबाद में स्थित?है. इस ‘मेहंदी जैव बाड़’ की खासीयत यह भी है कि यह कीट मुक्त है और फसलों को भी कीटमकोड़ों से सुरक्षा देती है. यह खुद ही एक कीटनाशक के रूप में काम करती?है. यह मेहंदी जैव बाड़ बारहमासी हरीभरी रहती है.

पूरी तरह से जैविक ‘मेहंदी जैव बाड़’ फसल के चारों ओर 1 मीटर की चौड़ाई में 6 से 9 लाइनों में लगाई जाती है, जो आगे चल कर मोटी और मजबूत जैविक बाड़ बन जाती है. जंगली सुअर, नील गाय व अन्य जंगली जानवर इस बाड़ को पार नहीं कर पाते और न ही इसे खा कर नष्ट कर पाते हैं. इस तरह किसानों की फसल कीटमुक्त व जंगली जानवरों से सुरक्षित रहती?है. ‘मेहंदी जैव बाड़’ लगाने के लिए न तो कंटीले तारों से फसल के चारों तरफ घेराबंदी करनी पड़ती है और न ही बिजली या बैटरी चालित कोई यंत्र लगाने की जरूरत होती है. यह पूरी तरह से सुरक्षित और परिस्थितियों के अनुकूल है और लागत में फायदे का सौदा है.

अगर आप भी इसे अपनाना चाहते?हैं या ज्यादा जानकारी हासिल करना चाहते?हैं तो कुछ कंपनियों की नीचे दी गई  मोबाइल नंबरों 919494947894, 919848028410 पर संपर्क कर सकते हैं.

इस प्रकार जैविक मेहंदी बाड़ से कोई भी किसान अपनी मेहनत से लगाई गई फसलों की हिफाजत आसानी से कर सकता?है.        

जज्बा

नवाजुद्दीन ने दिखाया खेती किसानी में दम

मुजफ्फरनगर : हिंदी फिल्मों के मशहूर अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी इस समय अपने फिल्मी जीवन में अभिनय की बुलंदियों पर हैं, लेकिन अभी भी जब वे अपने गांव बुढ़ाना जाते?हैं, तो एक आम किसान की तरह अपने खेतों में काम करना नहीं भूलते. वे अपने खेतों में एक किसान की तरह ही काम करते?हैं और एक आम आदमी की तरह ही अपने दोस्तों व चाहने वालों से मिलते?हैं. उन के चाहने वाले उन्हें तमाम उपहार भी भेजते?हैं, जिन्हें वे सहेज कर रखते?हैं.                    ठ्ठ

गुस्ताखी

खड़ी फसल बचाने के लिए छिड़क दी दवा

हैदराबाद : तेलंगाना राज्य सूखे के दौर से गुजर रहा है. खेत में खड़ी खरीफ  की फसल पानी की कमी में सूख कर बरबाद हो रही है. धान की खेती करने वाले किसान अपने खेत में बेहद जहरीले कैमिकल औक्सीटौसिन का छिड़काव कर रहे हैं. इस के अलावा किसान औक्सीटौसिन का इस्तेमाल सब्जी और फल की खेती में पैदावार बढ़ाने के लिए बड़ी मात्रा में करते हैं. वैसे इस खतरनाक दवा का इस्तेमाल खेती और पशुपालन में प्रतिबंधित है, क्योंकि औक्सीटौसिन जानवरों में पाया जाने वाला हारमोन है. इस का सेवन करने से इनसान पर खतरनाक असर पड़ सकता है. यह पहला मौका है, जब किसान अपनी पैदावार बढ़ाने के लिए औक्सीटौसिन को अपने खेतों में इस्तेमाल कर रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा करने से न केवल धान की खेती और जमीन पर बेहद गलत असर पड़ेगा, बल्कि सेहत के नजरिए से भी यह खतरनाक साबित होगा. हैदराबाद कोर्ट ने भी इस मामले पर सख्ती दिखाते हुए फलों को अप्राकृतिक तौर पर बड़ा करने और पैदावार बढ़ाने के लिए कैमिकल पदार्थों के इस्तेमाल को आड़े हाथों लिया. किसान जहां इस कैमिकल का इस्तेमाल ज्यादा पैदावार बढ़ाने की उम्मीद से करते हैं, वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि इस से पैदावार में कोई इजाफा नहीं होता.

धान की खेती करने वाले किसान जो कि आमतौर प सिंचाई के लिए नहर पर निर्भर हैं, सूखे के कारण सिंचाई नहीं कर सके. उन की खेत में खड़ी आधी से ज्यादा फसल सूख चुकी है. यही वजह है कि पैदावार बढ़ाने की उम्मीद में किसान औक्सीटौसिन का इस्तेमाल कर रहे हैं. वैसे तेलंगाना सरकार के कृषि विभाग ने औक्सीटौसिन के इस्तेमाल के खिलाफ  मुहिम छेड़ रखी है, परंतु किसान निजी कृषि फर्म वालों की सलाह पर ऐसा कर रहे हैं.       

सुविधा

खेतों में ही होगी मिट्टी की जांच

पटना : बिहार में मिट्टी की जांच को ले कर किसानों की बेरुखी को देखते हुए कृषि विभाग ने अब खेतों में ही मिट्टी की जांच करने और वहीं पर किसानों को रिपोर्ट देने की कवायद शुरू की है. राज्य के सभी कृषि विज्ञान केंद्रों में मिट्टी की जांच के पोर्टेबल किट मुहैया कराए जा रहे हैं. बिहार में फिलहाल 38 कृषि विज्ञान केंद्र काम कर रहे हैं और 6 नए केंद्र खोलने की तैयारी चल रही है. पोर्टेबल किट के जरीए खेत में ही 2 घंटे के अंदर मिट्टी की जांच की रिपोर्ट मिल जाएगी. खास बात यह है कि मिट्टी की जांच के लिए किसानों को कोई फीस भी नहीं देनी पड़ेगी. मिट्टी की जांच की रिपोर्ट आने के बाद कृषि वैज्ञानिक किसानों को बताएंगे कि उन के खेतों में कौन सी फसल लगाने से ज्यादा मुनाफा हो सकता है. इस के साथ ही किसानों को यह भी बताया जाएगा कि फसलों में कौन सी खाद कितनी मात्रा में डालनी है और फसल को कबकब कितना पानी देना है. मिट्टी की जांच के बाद किसान खेतों में केमिकल खादों का इस्तेमाल जरूरत के हिसाब से ही कर सकेंगे, जिस से खेत के बंजर होने  की तेज रफ्तार में कमी आएगी. विभाग हर 3 साल में मिट्टी की जांच कराएगा. मिट्टी की जांच में तेजी लाने के लिए हर प्रमंडल को मिट्टी जांच प्रयोगशाला से लैस एकएक गाड़ी मुहैया कराई जाएगी. हैदराबाद से मंगवाई गई एक चलतीफिरती प्रयोगशाला की कीमत 40 लाख रुपए है.

गौरतलब है कि बिहार में आमतौर पर मिट्टी का पीएच 6.5 से ले कर 8.4 के बीच है. कुछ इलाकों में मिट्टी का पीए 10 भी है. राज्य के ज्यादातर इलाकों में मीडियम हलकी मिट्टी है, केवल टाल क्षेत्रों में भारी मिट्टी है. इस के साथ ही मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की मात्रा 150 से ले कर 400 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है. इन के अलावा पौधों के पोषण के लिए जरूरी तत्त्वों में तांबा, मैगनीज, बोरोन, जस्ता, लोहा व क्लोरीन वगैरह भी शामिल हैं.  

जायका

मसालेदार भोजन से न घबराएं

लंदन : मसालेदार भोजन वाकई खाने वालों को बेहद लजीज लगता है. मगर खास बात यह?है कि मसालेदार भोजन कई बीमारियों से बचा कर मौत को पीछे धकेलने में मददगार भी साबित होता है. जी हां, यह बात बिलकुल सही है. ब्रिटिश मेडिकल जरनल में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मसालेदार भोजन को ज्यादा लेने से कैंसर, दिल और सांस की बीमारी से होने वाली मौतों का खतरा कम होता है. यह बात मर्दों से ज्यादा औरतों पर लागू होती है. इस रिपोर्ट के मुताबिक, किए गए सर्वे में हिस्सा लेने वाले उन लोगों ने, जिन्होंने रोज मसालेदार भोजन खाया, उन की मौत की आशंका उन लोगों के मुकाबले 14 फीसदी कम पाई गई, जिन्होंने हफ्ते में 1 बार या इस से भी कम मसालेदार भोजन लिया. यह बात मसालेदार भोजन लेने वाले उन लोगों पर और लागू होती है, जो शराब नहीं पीते. शोध करने वालों का कहना है कि मसालों में ऐसे तत्त्व होते हैं, जो सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं. यानी मतलब साफ?है कि लजीज मसालेदार खाने की बुराई करने वालों की दलीलें फुजूल हैं. अब तो खानेपीने के शौकीनों को मसालों से परहेज करने की जरूरत ही नहीं?है. अगर कोई डाक्टर मसालों की बुराई करे तो उसे इस रिपोर्ट का हवाला दिया जा सकता?है. 

चोरी

2 लाख के प्याज ही ले उड़े चोर

जयपुर : ज्यादातर चोर वैसे तो सोना और नकदी ही चुराते हैं, पर अब वे शातिर तरीके से प्याज चुराते नजर आ रहे हैं. लगता है कि महंगाई की मार अब चोरों को भी झेलनी पड़ रही है, तभी तो चोर प्याज पर भी अपने हाथ की सफाई दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं. प्याज के दाम आसमान क्या छूने लगे, चोरों ने भी अब इसे अपने निशाने पर ले लिया है. राजस्थान में एक बार फिर चोरों ने जयपुर की थोक मंडी से 2 लाख रुपए की तकरीबन 4 हजार किलोग्राम प्याज पर हाथ साफ  कर दिया. भले ही बाद में इन प्याज चोरों को पकड़ लिया गया. पकडे़ गए आरोपियों में एक सब्जी मंडी का चौकीदार है और दुकान के लिए जगह मुहैया कराने वाली एक औरत भी पकड़ी गई है. पुलिस ने जांच शुरू की, तो पता चला कि चौकीदार ने एक पिकअप वैन से औरत की जगह से प्याज उठवाए थे. इस के बाद पुलिस ने चौकीदार को गिरफ्तार कर के पूछताछ की, तो पूरा मामला खुल गया. पुलिस के अनुसार प्याज के 60 किलोग्राम के 70 बोरे चोरी किए गए. बताया जा रहा है कि चोरी किए गए माल की कीमत 2 लाख रुपए से भी ज्यादा है.          

तबाही

दियारा में मक्के की फसल चौपट

पटना : जिले के दियारा इलाकों में पानी में डूबने की वजह से तकरीबन 70 हजार हेक्टेयर खेत में लगी मक्के की फसल बरबाद हो गई है. गंगा नदी का जल स्तर बढ़ने से दियारा के सारे खेत पानी में डूब गए हैं, जिस से मक्के की फसल का रंग बिगड़ कर पीला होने लगा है. इस के साथ ही मवेशियों को रखने और पशुचारे की भी समस्या पैदा हो गई है. किसान रामप्रवेश के मुताबिक मक्के की 50 फीसदी फसल में बालियां आ गई थीं. बाढ़ के पानी में फसल के डूबने से उस के गलने का खतरा पैदा हो गया है. इस से किसानों की मेहनत और पूंजी बरबाद होने तय है. गौरतलब है कि बाढ़ से प्रभावित इलाकों में सरकार राहत के तौर पर 15 सौ रुपए और 40 किलोग्राम अनाज देती है, लेकिन फसलों के मुआवजे की कोई व्यवस्था नहीं है. कृषि विभाग का कहना है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में उन्हीं फसलों को लगाया जाता है, जो बाढ़ से पहले ही तैयार हो जाती हैं. इस के बाद भी अगर कोई किसान खतरा मोल ले कर फसल लगाता है, तो उस में सरकार की कोई जवाबदेही नहीं बनती है, इसिलए दियारा इलाकों में बाढ़ से होने वाले फसलों के नुकसान के एवज में कोई मुआवजा नहीं दिया जाता है.        

हालातहालात

शताब्दी निजी नलकूप योजना

पटना : बिहार में सूखे की हालत पैदा हो गई है और राज्य सरकार अपनी ‘शताब्दी निजी नलकूप योजना’ को अब तक फाइलों से बाहर नहीं निकाल सकी है. गौरतलब है कि पिछले साल फरवरी महीने में इस योजना का ऐलान करते समय तब के कृषि मंत्री ने दावा किया था कि इस योजना के तहत अगले 5 सालों में 12 लाख किसानों को निजी नलकूप दिए जाएंगे. इस योजना की शुरुआत में हर जिले के 1-1 प्रखंड में किसानों को सब्सिडी पर निजी नलकूप दिए जाने हैं. सभी प्रखंडों के पंचायत भवनों, स्कूलों, सामुदायिक भवनों या वसुधा केंद्रों में कैंप लगा कर किसानों से आवेदन लिए जाने थे. 100 फुट गहरी बोरिंग कराने पर 238 रुपए प्रति मीटर या अधिकतम 15 हजार रुपए और इस से ज्यादा गहरी बोरिंग कराने पर प्रति मीटर 595 रुपए या अधिकतम 35 हजार रुपए सब्सिडी देने का प्रावधान रखा गया है.

मोटर पंप के लिए 50 फीसदी या 10 हजार रुपए की सब्सिडी देने की बात कही गई थी. लघु जल संसाधन विभाग ने इस के लिए 65 करोड़ रुपए जारी भी कर दिए थे, ताकि किसानों को सब्सिडी देने में कोई दिक्कत न हो. वित्तीय साल 2014-15 खत्म हो गया पर इस योजना पर एक फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं की जा सकी?है. इस योजना की शुरुआत के मौके पर पटना, पूर्णियां, नालंदा और पश्चिमी चंपारण के जिन किसानों को स्वीकृतिपत्र सौंपे गए थे, वे नलकूप के लिए दफ्तर के चक्कर लगालगा कर बुरी तरह से थक गए हैं. नालंदा के किसान उमेश कुमार ने बताया कि लघु जल संसाधन विभाग में किसानों की सुनने वाला कोई नहीं?है.  

मामला

जांच के दायरे में बीटी काटन

चंडीगढ़ : इस बार प्रदेश में अमेरिकन कंपनी के बीज द्वारा उगाई गई बीटी काटन में सफेद मक्खी का प्रकोप देखा गया. एक तरफ कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ सफेद मक्खी की रोकथाम के लिए कृषि वैज्ञानिकों से चर्चा कर रहे थे, वहीं दूसरी तरफ बीज बनाने वाली अमेरिकन कंपनी से भी जवाबतलब किया गया. सरकार का कहना है कि पूरी तरह से प्रमाणित बीज न होने की दशा में उन पर शिकंजा कसा जाएगा. उन्होंने कृषि विभाग के अधिकारियों को बीज की जांच के ओदश भी दिए. कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने केंद्र सरकार से आग्रह किया?है कि वे अपनी टीम भेज कर किसानों को हुए नुकसान का जायजा लें जिस से किसानों को हुए नुकसान भी भरपाई की जा सके. अकस ऐसी बातों से हमारे कृषि अधिकारियों की नादानी का खुदासा होता रहता?है. सवाल उठता?है कि कोई भी नया कदम उठाने से पहले उस के बारे में पूरी खोजबीन क्यों नहीं की जाती.            

डेरी में महिलाओं का दखल

करनाल : अब वह जमाना नहीं रहा जब गांवदेहात की औरतों को मुंह ढक कर रहना पड़ता था और घर से बाहर निकलने के लिए कई बार सोचना पड़ता था, वह भी बड़ों से इजाजत ले कर. अब हालात में बहुत कुछ बदलाव होने लगा है और महिलाएं भी पुरुषों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं. गांव अमृतपुरा कलां, करनाल (हरियाणा) की ऐसी ही कुछ महिलाओं ने ‘अनमोल महिला दुग्ध समिति’ बनाई और दूध का कारोबार करने का मन बनाया. ये सभी महिलाएं 30 से 45 साल तक की हैं. ये औरतें सविता, कमलेश, सीमा, ममतेश और मूर्ति देवी हैं. इन के उत्साह को देख कर नेशनल डेरी रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर और वैज्ञानिकों ने इन्हें दूध उत्पादन, प्रोसेसिंग और बिक्री करने के संबंध में ट्रेंड किया और इन्हें 50 हजार रुपए का लोन दिया और 5 हजार रुपए तकनीकी उपकरणों के लिए अलग से मुहैया कराए. आज ये पांचों महिलाएं शादी और पार्टियों में दूध और दूध के बने उत्पादों के और्डर लेती हैं. साथ ही, गांव और कसबों के आसपास के क्षेत्रों में दूध की मांग को पूरा करती हैं. आज के हालात के मुताबिक महिलाओं की यह तरक्की काबिलेतारीफ है. अब वह जमाना लद गया, जब औरतों का कोई वजूद नहीं था. अब तो हर जगह महिलाओं का जलवा?है.               

अमेरिका की मदद से बिहार होगा बाढ़ मुक्त

पटना : बिहार को बाढ़ मुक्त बनाने में अमेरिकी सेना की मुख्य इंजीनियरिंग टीम कौर्प्स मदद करेगी. गौरतलब?है कि कुछ महीने पहले अमेरिकी सेना की इंजीनियरिंग विंग कौर्प्स डाक्टर एपीजे अब्दुल कलाम से मिली थी, तो कलाम ने विंग के अफसरों को बिहार को बाढ़ से नजात दिलाने की बात की थी. अब कलाम जिंदा नहीं?है, लेकिन बिहार सरकार ने उन के सपने को साकार करने की पहल की?है. अमेरिकी सेना की मदद से इस दिशा में काम शुरू कर दिया गया?है. साल 1775 में बनी अमेरिकी सेना की इंजीनियरिंग विंग में 650 सैनिक और 34600 सिविल औफिसर शामिल हैं. यह दुनिया की सब से बड़ी इंजीनियरिंग, डिजाइन और कंस्ट्रक्शन मैनेजमेंट एजेंसी है. कौर्प्स ने अब तक 400 अप्राकृतिक नदियों और जलाशयों को तैयार किया है. इस के अलावा 8500 मील लंबे तटबंध का निर्माण भी किया?है. इस ने अमेरिका के समुद्री तटों की किलाबंदी भी की है.

गौरतलब?है कि बिहार के 38 में से 28 जिलों को हर साल बाढ़ की तबाही झेलनी पड़ती?है. अररिया, कटिहार, खगडि़या, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, भागलपुर, बेगुसराय, भोजपुर, बक्सर, दरभंगा, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, लखीसराय, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, नालंदा, सारण, शेखुपरा, शिवहर, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, सिवान, वैशाली, सुपौल और पअना को हर साल बाढ़ से काफी नुकसान उठाना पड़ता?है. गंगा, कोसी, गंडक, बागमती, कमला बलान, भूतही बलान नदियों के अलावा नेपाल की नदियों में आई बाढ़ से भी बिहार में हाहाकार मचता रहता?है. राज्य का कुल 73 फीसदी इलाका बाढ़ग्रस्त है, जो देश के कुल बाढ़ग्रस्त इलाके का 17 फीसदी?है. बिहार के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी ने बताया कि कौर्प्स के अफसरों के साथ कई दौर की बात हो चुकी?है और अब कौर्प्स प्रोजेक्ट तैयार करने में लगी हुई?है.              

जश्न

तोतामैना की शादी देखने के लिए भीड़ उमड़ी

नई दिल्ली : ‘तोतामैना की कहानी तो पुरानी हो गई…’ फिल्म ‘फकीरा’ का यह गीत तो आप ने खूब सुना होगा, पर तोतामैना की शादी की बात आज के दौर में कुछ हजम होने वाली नहीं लगती. नार्थईस्ट डिस्ट्रिक्ट के ब्रह्मपुरी इलाके में तोतामैना की एक अनोखी शादी देखने को मिली. यह शादी बडे़ ही गाजेबाजे के साथ धूमधाम से की गई. ब्रह्मपुरी इलाके के रहने वाले हाजी नजाकत अली 4 साल पहले अपने घर एक मैना को खरीद कर लाए थे. उन्होंने मैना की परवरिश अपनी बेटी की तरह की, वहीं नजाकत अली के साले कमर अब्बास के पास एक तोता था. जीजासाले दोनों ने मिल कर तोता और मैना की शादी पक्की कर दी और इंतजाम में जुट गए. साले कमर अब्बास बैंडबाजे के साथ डांस करते हुए तोते की बरात ले कर अपने जीजा नजाकत अली के घर पहुंचे. घोड़ी पर बैठे बच्चे के हाथ में तोते वाला पिंजरा था. जब बरात गली से गुजर रही थी, तो देखने वालों की भीड़ लग गई. नजाकत अली ने बरातियों का स्वागत बहुत धूमधाम से किया. वहां तमाम तरह के पकवान बनाए गए थे. बरात में शामिल लोगों का हुजूम देखते ही बनता था. खाना खाने के बाद बरातियों के चेहरों पर अलग ही खुशी दिख रही थी. दुलहन बनी मैना को देखने के लिए भी लोग उतावले हो रहे थे. नजाकत अली के घर पर मैना की शादी की सारी रस्में अदा की गईं.यह अनोखी शादी पूरे इलाके में बहुत दिनों तक चर्चा का विषय बनी रही. 

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ग्राफ्टिंगमैन आनंद गणनायक

ओडिशा : देवगढ़ गांव के 72 साला किसान आनंद गणनायक ने अपनी 18 एकड़ जमीन पर आम, लीची और चने की फसल लगाई हुई है. वे इस काम को साल 1984 से कर रहे हैं. साथ ही वे कुछ अलग करने की कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने ग्राफ्टिंग तकनीक के बारे में माहिरों से जानकारी ली और अपने खेतों में इस तकनीक को अपनाने के लिए प्रेरित हुए. उन्होंने आम के पौधों में ग्राफ्टिंग की जिस से उन्होंने आम की नईनई किस्में ईजाद कीं. इस ग्राफ्टिंग तकनीक से लगाए पेड़ों से उन्हें बहुत अच्छे नतीजे मिले और उन्होंने अपने आमों की इस प्रजाति का नाम ‘आनंद सागर’ रखा. जुलाई के दूसरे हफ्ते से अगस्त तक उन्होंने डबल मुनाफा कमाया. इस के साथ ही उन्होंने अपने दोस्तों और दूसरे किसानों को भी ग्राफ्टिंग के बारे में जानकारी दी.

ग्राफ्टिंग एक ऐसी तकनीक है जिस में एक पौधे की शाखाओं को बीच से काट कर व चीर कर उस को दूसरे पौधे की शाखा साथ जोड़ा जाता है. कुछ ही दिनों में दोनों पौधों की शाखाएं और मुख्य पौधा आपस में जुड़ जाते हैं. यह तकनीक बागबानी में बेहतर उत्पादन के लिए दूसरे देशों में भी अपनाई जाती है. अगर किसी तरह की कुदरती आपदा न आए तो इस तकनीक को अपनाने से वे हर साल 20 से 30 फीसदी ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं. अच्छा स्वाद और ज्यादा गूदा होने की वजह से इस प्रजाति की बिहार और उत्तर प्रदेश में काफी मांग है. बाजार में इस प्रजाति की कीमत भी ज्यादा मिलती है. ओडिशा के मुख्यमंत्री द्वारा साल 2009 में जिले के उत्कृष्ट किसान के तौर पर आनंद गणनायक को सम्मानित भी किया जा चुका है. उन की इच्छा है कि इस बेहतर तकनीक को देश के ज्यादा से ज्यादा किसान अपनाएं.        

योजना

नदी जोड़ योजना की कछुआ चाल

पटना : बिहार नदी जोड़ योजना के मसले पर केंद्र और बिहार सरकारें अपनीअपनी जिद चलाने की कोशिशों में लगी हुई हैं, जिस से यह योजना धीमी गति से आगे बढ़ रही है. केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के तहत काम करने वाली नेशनल वाटर डेवलपमेंट (एनडब्ल्यूडीए) बिहार में नदी जोड़ परियोजना का काम देख रही है और उस ने बिहार सरकार की 9 में से 4 परियोजनाओं की संभावनाओं को खारिज कर दिया है. वहीं बिहार सरकार का कहना है कि वह केंद्र के फैसले को मानने के लिए मजबूर नहीं है. राज्य सरकार अपने स्तर से रिसर्च करवा कर नदी जोड़ परियोजनाओं की संभावनाओं का करने की जिद पर अड़ गई है. गौरतलब है कि एनडब्ल्यूडीए को 9 परियोजनाओं का डीपीआर बनाने का जिम्मा दिया गया था. इस में कोसीमेची लिंक, बूढ़ी गंडकनोनगंगा लिंक, अक्सर पंप कैनाल, चंदनबटुआबेसिन, कोसीअधवाराबागमती लिंक, कोहराचंद्रावत लिंक, बगमतीबूढ़ीगंडक वाया वेलवाधार, कोसीगंगा लिंक वाया बागमती और गंगा के पानी को दक्षिण बिहार में उपयोग करने की परियोजना शामिल है. इस में से कोसीमेची लिंक एवं बूढ़ीगंडकनोन वाया गंगा लिंक का डीपीआर केंद्रीय जल आयोग को सौंप दिया गया है, जबकि बक्सर पंप कैनाल, कोसीअधवाराबागमती लिंक और चंदनबटुआ बेसिन के डीपीआर पर काम चल रहा है.

केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय ने बागमतीबूढ़ीगंडक वाया वेलवाधार, कोहराचंद्रावत लिंक, कोसीगंगा लिंक वाया वागमती तथा गंगा परियोजना की संभावनाओं को पूरी तरह से रद्द कर दिया है. इस की वजह यह बताई गई है कि इन चारों परियोजनाओं पर जितना खर्च किया जाएगा, उस के मुकाबले काफी कम लोगों को फायदा मिल सकेगा. बिहार के जल संसाधन मंत्री विजय कुमार चौधरी कहते हैं कि वे केंद्रीय एजेंसी की रिपोर्ट मानने के लिए बाध्य नहीं हैं. सरकार एक कमेटी बना कर अपन स्तर पर संभावनाओं की खोज कराएगी.  

टानिक

दूध बढ़ाने वाला पशुओं का पाउडर

नई दिल्ली : अभी हाल ही में अनिल हर्बल नर्सरी फरीदाबाद हरियाणा ने दुधारू पशुओं के लिए एक हर्बल पाउडर तैयार किया?है. सुरभि गोल्ड नाम से बना यह पशु आहार सप्लीमेंट पूरी तरह प्राकृतिक है. इसे प्राकृतिक तरीके से हासिल पौधों से तैयार किया जाता?है. इस में शतावर व अश्वगंधा वगैरह का प्रयोग किया जाता?है, जो पशुओं के लिए बहुत फायदेमंद हैं. अनिल हर्बल नर्सरी के मालिक अनिल कुमार का कहना?है कि इस पाउडर को पशुओं को नियमित रूप से देने से पशुओं का स्वास्थ्य सुधरता है. इस से दूध में फैट की मात्रा में बढ़त, दूध में तकरीबन 2 किलोग्राम की बढ़ोतरी होती है. इस से पशुओं का गर्भचक्र भी सामान्य रहता है. 60 ग्राम मात्रा प्रतिदिन के हिसाब से यह पाउडर रोजाना दुधारू पशुओं को उन के रातिब में मिला कर दे सकते?हैं. अभी यह उत्पाद 1 किलोग्राम के पैकेट में उपलब्ध है, जिस की कीमत 500 रुपए?है. अगर आप इस हर्बल पाउडर को मंगाना चाहते हैं या इस बारे में ज्यादा जानकारी चाहते?हैं तो अनिल कुमार के मोबाइल नंबरों 09315515650, 07065344742 पर बात कर सकते हैं.  

बरबादी

हरियाली के नाम पर लगवा दिए प्लास्टिक के पेड़

रायपुर : सरकार भी अजबगजब कारनामे कर के वाहवाही बटोरने में पीछे नहीं रहती. छत्तीसगढ़ सरकार ने हरियाली लाने का एक अलग ही हैरान कर देने वाला हल निकाला है. छत्तीसगढ़ सरकार ने शहर को हराभरा और खूबसूरत बनाने के लिए असली पेड़ों के बजाय प्लास्टिक के पेड़ लगवा दिए. चेरी के ये प्लास्टिक पेड़ बड़ेबड़े नेताओं और अफसरों के बंगलों के बाहर लगवाए गए हैं. इन पेड़ों की डालियों पर छोटीछोटी लाइटें लगी हैं, जिन्हें रात के समय जलाया जा सकता है. यूथ वेलफेयर डिपार्टमेंट और पीडब्ल्यूडी महकमे ने मिल कर राजधानी में ऐसे तकरीबन 8 पेड़ लगाए हैं, जबकि रायपुर के अलगअलग इलाकों में सड़क के डिवाइडरों पर 28 से ज्यादा प्लास्टिक के पेड़ों को लगाया गया है.

बताते हैं कि प्लास्टिक के 1 पेड़ की कीमत तकरीबन 2 लाख रुपए से ज्यादा बताई जा रही है. अब तक इन पेड़ों पर 70 लाख रुपए से भी ज्यादा रकम खर्च की जा चुकी है. उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इन पेड़ों के लिए राज्य सरकार और नए टेंडर जारी करे. राज्य सरकार ने इन पेड़ों को लगाने के लिए बाकायदा टेंडर जारी किए थे. सप्लायरों को जरूरत से ज्यादा पैसा दिया गया था. हर पेड़ के लिए 2 लाख रुपए से ज्यादा का भुगतान किया गया, जबकि उन की असल कीमत 35 से 40 हजार रुपए है.              

मदद

तालाब खुदाई पर अनुदान

पटना : बिहार में मछलीपालकों को तालाब की खुदाई के लिए 40 फीसदी अनुदान मिलेगा. मत्स्य विभाग को इस बात का भरोसा है कि इस से मछलीपालन को बढ़ावा मिलेगा. इस के साथ ही मछलीपालन करने वाले किसान फंगेसियस मछली के पालन पर 60 फीसदी अनुदान का फायदा भी उठा सकते?हैं.

बिहार के पशुपालन और मत्स्य संसाधन मंत्री बैद्यनाथ साहनी ने बताया कि मछली की पैदावार को बढ़ाने के लिए एकसाथ कई योजनाओं को चालू किया गया है और कई किसान और मछलीपालक इस का फायदा उठाने लगे?हैं. अब बिहार में ही मत्स्य बीज पैदा करने के लिए हैचरी बनाने की योजना पर काम चल रहा है. सरकार की कोशिश है कि अगले 5 सालों में राज्य में मछली के उत्पादन में 3 गुना इजाफा हो. इस के लिए किसानों और मछलीपालकों को लगातार ट्रेनिंग दी जा रही है और उन में जागरूकता पैदा की जा रही?है. अब तक 3 हजार किसानों को?ट्रेनिंग दी जा चुकी?है और इस साल के आखिर तक 1500 किसानों को ट्रेनिंग देने का लक्ष्य रखा गया?है.          

बदहाली

दाल में प्याज का तड़का गायब

नई दिल्ली : थाली से अरहर की दाल और दाल में प्याज का तड़का गायब हो गया है. प्याज के बढे़ दामों के साथसाथ अब दाल के दामों में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हो रही है. अरहर की दाल ही नहीं, दूसरी दालों के भाव भी बढ़े हैं प्याज के दाम 50 से 60 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गए हैं. विक्रेताओं को डर है कि सरकार ने अगर जल्दी दखल न किया, तो इस बार और भी महंगे दामों में प्याज खरीदना पड़ सकता है. इधर अरहर की दाल भी अपना असर दिखा रही है. थोक भाव में अरहर की दाल 135 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई है. वहीं फुटकर बाजार में यह 160 रुपए प्रति किलोग्राम में बिक रही है. इसी तरह उड़द की दाल भी 10 रुपए प्रति किलोग्राम तक पहुंच चुकी है. साथ ही दूसरी दालें भी अपना रंग दिखाने लगी हैं. उम्मीद है कि बाहरी देशों से दालें आएंगी. अरहर की फसल की कम पैदावार होने से भी दामों में बढ़ोतरी हुई है. राज्य में अरहर की दाल का स्टाक नहीं रह गया है. वहीं डालर के मुकाबले रुपया भी काफी कमजोर हो गया है. इसी तेजी को देखते हुए सरकार अब विदेशों से दाल मंगाने के लिए कोशिश कर रही है, ताकि दालों की बढ़ी हुई कीमतों पर रोक लगाई जा सके. जमाखोर भी इस बेहतरीन मौके का फायदा गंवाने के मूड में नहीं हैं. इस वजह से भी अरहरमूंगउड़द की दालों में कोई नरमी नहीं दिख रही  है.

थोक विक्रेताओं का कहना है कि अगर सरकार ने समय रहते विदेशों से दाल मंगा ली होती, तो आम आदमी को ऐसी तकलीफ  नहीं देखनी पड़ती.                   

सहूलियत

फसल बीमे की मीआद बढ़ी फसल बीमे की मीआद बढ़ी

नई दिल्ली : तमाम बेबस किसानों को राहत देते हुए केंद्र सरकार ने फसल बीमा कराने की मीआद बढ़ा दी है. राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के तहत फसल बीमा की मीआद को कर्ज लेने वाले किसानों के लिए बढ़ा कर अब 30 सितंबर कर दिया गया है.गैर ऋणधारक किसान भी इस छूट से लाभ हासिल करेंगे. गैर ऋणी किसानों के लिए यह सीमा 31 जुलाई होती है, मगर राहत के बाद उन के लिए भी समय सीमा में इजाफा किया गया है.गौरतलब है कि महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, आंध्र प्रदेश, तेलंगान, गुजरात और ओडिशा से गैर ऋणी किसानों के लिए फसल बीमा की मीआदबढ़ाए जाने का पत्र केंद्र सरकार को मिला था.कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा कि यह कदम सूबों में हुई कम बारिश की वजह से फसलों की बोआई में हुई देरी के तहत उठाया गया है. केंद्र सरकार के इस कदम से तमाम किसानों को दिली राहत मिली होगी. इस कदम से किसान सरकार के कायल हो जाएंगे.

सवाल किसानों के

सवाल : प्याज की संकर किस्मों के बारे में बताएं. इन किस्मों के बीज कहां मिलेंगे?

-राम भरोसे, जालौन, उत्तर प्रदेश

जवाब : प्याज की संकर किस्में अर्का कीर्तिमान, अर्का लालिमा, मरसीडीज व कागर और कोलीना व एक्सकालीबर हैं. इन के अलावा पूसा रेड व पूसा माधवी भी अच्छी किस्में हैं.

अर्का कीर्तिमान : यह संकर किस्म भारतीय बागबानी अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित की गई है. इस की गांठें लाल व कसी हुई और छिलका पतला होता है. इस की बनावट गठीली होती है. यह परिवहन व भंडारण के लिए उपयुक्त है. यह रोपाई के बाद 110-120 दिनों में तैयार हो जाती है. इस की औसत पैदावार 4 सौ से 6 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म रबी मौसम के लिए उपयुक्त है.

अर्का लालिमा : यह हाईब्रिड किस्म आईआईएचआर बेंगलूरू द्वारा विकसित की गई है. इस की गांठें गहरी लाल, गोल व छिलका पतला होता है. इस की बनावट गठीली होती है. परिवहन व भंडारण के लिए यह भी ठीक है. यह रोपाई  के बाद 115-125 दिनों में तैयार हो जाती है. यह किस्म रबी मौसम के लिए ठीक है और इस की औसत पैदावार 4 सौ से 5 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर है.

मरसीडीज व कागर : यह किस्म निजी कंपनी सेमीवीज द्वारा विकसित की गई है. इस की गांठें पीलापन लिए होती हैं व उन का आकार 6.0-8.0 सेंटीमीटर का होता है. इस में तीखापन हलका होता है. यह एक्सपोर्ट के लिए बढि़या किस्म है. इस की औसत पैदावार 550 से 700 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म खरीफ मौसम में देर से बोआई के लिए व रबी मौसम में उगाए जाने के लिए ठीक है. यह पौध रोपाई के बाद 95-100 दिनों में तैयार हो जाती है.

कोलीना व एक्सकालीबर : यह किस्म निजी कंपनी नून्हेम्स द्वारा विकसित की गई है. इस की गांठों का आकार 6-8 सेंटीमीटर व रंग पीलापन लिए होता?है. इस में तीखापन कम होता है. इस की औसत पैदावार 5 सौ से 650 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. रोपाई के बाद 85 से 105 दिनों में तैयार होने वाली यह किस्म देर से बोआई के खरीफ मौसम में व रबी मौसम में आसानी से उगाई जा सकती है.

पूसा रेड : इस की गांठें मध्य आकार की चपटी, गोल व हलके लाल रंग की होती हैं. इस की 10 गांठों का वजन करीब 900 ग्राम होता है. यह भंडारण के लिए बहुत उपयुक्त किस्म है. यह रोपाई के बाद लगभग 140-145 दिनों में तैयार हो जाती है. इस की पैदावार 250-300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह किस्म खरीफ में देर से बोआई के लिए व रबी मौसम के लिए?ठीक है.

पूसा माधवी : हलके लाल रंग की प्याज की यह किस्म गोल व चपटे आकार की होती है. इस के 10 प्याज का वजन 9 सौ ग्राम से 1 किलोग्राम तक होता है. रोपाई के बाद 130-135 दिनों में तैयार हो जाने वाली यह किस्म भंडारण के लिए अच्छी किस्म है. इस की पैदावार 3 सौ क्विंटल प्रति हेक्टेयर है. यह प्रजाति रबी मौसम के लिए उपयुक्त है. 

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