गन्ना देश की पुरानी व अहम फसलों में से एक है. देश में 526 चीनी मिलें गन्ने की भरपूर पैदावार की बदौलत ही चल रही?हैं. देश के 20 राज्यों में गन्ने की काफी खेती की जाती है. साल 2016 के दौरान भारत में गन्ने का कुल रकबा 49.53 लाख हेक्टेयर था, जबकि गन्ने की पैदावार 3521 लाख टन व प्रति हेक्टेयर औसत उपज 71 टन थी.

गौरतलब है कि केंद्र व राज्य सरकारें गन्ना विकास स्कीमों में काफी पैसा लगा रही हैं, लेकिन खेतों में हरियाली व गांवों में खुशहाली बढ़ने के बजाय घट रही है. अत: गन्ना विकास का नतीजा ढाक के तीन पात ही नजर आ रहा है. मसलन, साल 2014-15 में देश में गन्ने का कुल क्षेत्रफल 49.93 हजार हेक्टेयर था, लेकिन साल 2015-16 में वह 40 हजार हेक्टेयर घट कर 49.53 हेक्टेयर ही रह गया था.

इस के अलावा ज्यादातर राज्यों में गन्ने का प्रति हेक्टेयर औसत उत्पादन भी गिर रहा है. मसलन, साल 2014-15 के दौरान आंध्र प्रदेश में गन्ने का कुल उत्पादन 9987 हजार टन था जो साल 2015-16 के दौरान घट कर सिर्फ  9312 हजार टन रह गया.

इसी तरह महाराष्ट्र में साल 2015 के दौरान गन्ने का उत्पादन 84199 हजार टन था जो अगले साल 2016 में घट कर 73790 हजार टन व कर्नाटक में 43776 हजार टन से घट कर सिर्फ 38475 हजार टन ही रह गया.

पैदावार में गिरावट

हैरत की बात यह है कि कमी सिर्फ गन्ने के रकबे व पैदावार में ही नहीं आई. कई राज्यों में तो गन्ने की औसत उपज भी बढ़ने के बजाय घटी है. साल 2015 में बिहार में प्रति हेक्टेयर गन्ने की औसत उपज 55179 किलोग्राम, महाराष्ट्र में 82232 व कर्नाटक में 91200 किलोग्राम थी. लेकिन 2016 के दौरान तीनों राज्यों में गन्ने की औसत उपज घट कर क्रमश: सिर्फ 54120, 74762 व 85500 किलोग्राम ही रह गई. सवाल उठता है कि आखिर यह कैसा गन्ना विकास है?

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