खेती जगत में भी महिलाएं अपना जलवा बिखेर रही हैं. वे किसी भी मामले में मर्द किसानों से कम नहीं  हैं. महिला किसानों को ले कर आमतौर पर यह सोचा जाता है कि वे केवल खेती में मजदूरी का ही काम करती हैं. असल में यह बात सच नहीं है. आज महिलाएं किसान भी हैं. वे खेत में काम कर के घर की आमदनी बढ़ा रही हैं. बैंक से लोन लेने के साथ ही साथ ट्रैक्टर चलाने, बीज रखने, जैविक खेती करने, खेत में खाद और पानी देने जैसे बहुत सारे काम करती हैं.

ऐसी महिला किसानों की अपनी सफल कहानी है, जिस से दूसरी महिला किसान भी प्रेरणा ले रही हैं. जरूरत इस बात की है कि हर गांव में ऐसी महिला किसानों की संख्या बढे़ और खेती की जमीन में उन को भी मर्दों के बराबर हक मिले. महिलाओं की सब से बड़ी परेशानी यह है कि खेती की जमीन में उन का नाम नहीं होता. इस वजह से बहुत सी सरकारी योजनाओं का लाभ महिला किसानों को नहीं मिल पाता है. खेती की जमीन में महिलाओं का नाम दर्ज कराने के लिए चले ‘आरोह’ अभियान से महिलाओं में एक जागरूकता आई है. आज वे बेहतर तरह सेअपना काम कर रही हैं. तमाम प्रगतिशील महिला किसानों से बात करने पर पता चलता है कि वे किस तरह से अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ीं.

मुन्नी देवी शाहजहांपुर की रहने वाली हैं. उन के परिवार में 2 बेटे व एक बेटी है. लेकिन घर के हालात कुछ ऐसे बदले कि मुन्नी देवी का परिवार तंगहाली में आ गया. घर में बंटवारा हुआ. पति के हिस्से में जो जमीन आई, उस से गुजारा करना मुश्किल था. मुन्नी देवी को आश्रम से जुड़ने का मौका मिला. हिम्मत जुटा कर उन्होंने पति से बात कर आश्रम में वर्मी कंपोस्ट बनाने का प्रशिक्षण ले कर बाद में खुद ही खाद बनाने का काम शुरू कर दिया. आर्थिक उन्नयन के लिए मुन्नी देवी फसलचक्र व फसल प्रबंधन को बेहद जरूरी मानती हैं. 3 बीघे खेत में सब्जी व 5 बीघे खेत में गेहूं 4 बीघे खेत में गन्ने की फसल उगा रही हैं. गन्ने के साथ मूंग, उड़द, मसूर, लहसुन, प्याज, आलू, सरसों वगैरह की सहफसली खेती करती हैं, जिस से परिवार की रसोई के लिए नमक के अलावा बाकी चीजों की जरूरत पूरी कर लेती हैं.

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