मशहूर फूल गेंदा की उत्पत्ति दक्षिण अमेरिका और मैक्सिको की मानी जाती है. गेंदे की खेती विभिन्न प्रकार की जलवायु और मृदा में सफलतापूर्वक की जा सकती है. गेंदे के पौधे में पुष्पन की अवधि अधिक होने के साथ ही साथ सुंदर पुष्प व इस के पुष्प का जीवनकाल अच्छा होने से पूरे विश्व में गेंदे के फूल की मांग दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. मुख्य तौर पर गेंदे की 3 प्रजातियों टैंजेटिस इरेक्टा (अफ्रीकन गेंदा), टैंजेटिस पेटुला (फ्रेंच गेंदा) और टैंजेटिस माइन्यूटा (जंगली गेंदा) का इस्तेमाल विभिन्न मकसदों के लिए किया जाता है. अफ्रीकन और फ्रेंच गेंदे के फूलों का इस्तेमाल माला बनाने, पार्टी या शादी के पंडाल को सजाने, शादी में गाड़ी की सजावट और धार्मिक जगहों में पूजा के लिए किया जाता है. इस के अलावा इसे गमलों और क्यारियों में लगा कर घर, पार्क वगैरह जगहों को सजाया जाता है.

अफ्रीकन गेंदे की कुछ प्रजातियां, जिन की पुष्प डंडी लंबी होती है, उन के पुष्पों को डंडी के साथ काट कर घर के अंदर गुलदस्तों में लगा कर सजावट के लिए इस्तेमाल किया जाता है. पिछले कुछ सालों में दक्षिण भारत में अफ्रीकन गेंदे का क्षेत्रफल इस के फूलों की पंखुडि़यों से प्रसंस्करण विधि द्वारा कैरोटिनोएड्स निकालने के कारण बढ़ा है और कैरोटिनाएड्स का अधिकांश इस्तेमाल पोल्ट्री फीड (मुरगी के दाने) में किया जा रहा है. इस प्रकार का पोल्ट्री फीड मुरगी को खिलाने से उस के अंडे के योक और मांस का रंग पीला हो जाता है. ऐसे अंडों और मांस की मांग बाजार में ज्यादा है. दक्षिण भारत से कैरोटिनोएड्स को लगातार बाहर के तमाम देशों में  भेजा जा रहा है.

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