दुनिया के मिर्च उत्पादक देशों में भारत का नाम सब से ऊपर आता है. मिर्च एक खास मसाला व नकदी फसल है. सेहत के लिहाज से मिर्च में विटामिन ए व सी और कुछ खनिजलवण पाए जाते हैं. मिर्च की फसल में कीटों द्वारा काफी नुकसान होता है. ये कीट पत्तियों व फलों को नुकसान पहुंचाते हैं. यहां मिर्च की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले खास कीटों की जानकारी दी जा रही है. दीमक : यह सर्वभक्षी कीट है, जो उदई के नाम से भी जाना जाता है. इस का प्रकोप मुख्य रूप से रेतीली मिट्टी, कम पानी और ज्यादा तापमान की अवस्थाओं में ज्यादा होता है. यह मिर्च की फसल को विकास की किसी भी अवस्था में नुकसान पहुंचा सकती है. यह जमीन के नीचे मिट्टी में अपना घर बना कर रहती है. दीमक मिर्च की जड़ों को खा कर नुकसान पहुंचाती है, इस वजह से पौधे जगहजगह झुंडों में सूख जाते हैं और खींचने पर आसानी से उखड़ जाते?हैं. खेत में सूखे हुए पौधों की जड़ों की जगह खोदने पर दीमक आसानी से दिखाई देती है. सूखे इलाकों में दीमक का प्रकोप ज्यादा होता?है इस से मिर्च की पैदावार पर बुरा असर पड़ता है.

इलाज

* खेत व खेत के आसपास दीमक के घरों व खरपतवारों को नष्ट करें.

* खेत में गोबर या मींगनी की खाद अच्छी तरह से सड़ा कर डालनी चाहिए.

* खेत में नीम की खली 200 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के समय मिलाएं.

सफेद लट : यह जमीन में रह कर जड़ों को खाती है, जिस से पौधे कमजोर हो कर पीले पड़ जाते?हैं और फिर सूख जाते हैं. वयस्क लट मुड़ी हुई अर्धचंद्राकार रूप में जमीन के अंदर रहती है. मानसून या इस से पहले भारी वर्षा होने व कुछ क्षेत्रों के खेतों में पानी लगाने पर जमीन से भृंगों का निकलना शुरू हो जाता?है. भृंग रात के समय जमीन से निकल कर परपोषी पेड़ों (खेजड़ी, बेर, अमरूद व आम वगैरह) पर बैठते हैं और पत्तियों को खाते?हैं. ये खेतों की मिट्टी में अंडे देते हैं, जिन से लटें निकल कर पौधों को नुकसान पहुंचाती?हैं. इन का साल में 1 ही जीवनकाल होता है.

इलाज

अगर वयस्क भृंगों को परपोषी पेड़ों से रात में पकड़ने की सुविधा हो तो?भृंगों के निकलने के बाद करीब 9 बजे रात को बांसों की सहायता से परपोषी पेड़ों पर बैठे भृंगों को हिला कर नीचे गिराएं व इकट्ठा कर के मिट्टी का तेल मिले पानी (1 लीटर तेल व 20 लीटर पानी) में डाल कर नष्ट करें. 

सफेद मक्खी : इस कीट के बच्चे व वयस्क दोनों ही पत्तियों के कोमल भागों से रस चूस कर काफी नुकसान पहुंचाते?हैं. इन के असर से पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और पौधों की बढ़वार रुक जाती?है. यह मक्खी एक किस्म का तरल पदार्थ निकालती?है, जिस से फफूंदी रोग हो जाता है और पौधों का विकास व प्रकाश संश्लेषण रुक जाता है. यह जितना नुकसान रस चूस कर नहीं करती, उस से कहीं ज्यादा विषाणु रोग फैला कर करती?है.

मोयला : यह कीट चेपा व माहू के नाम से भी जाना जाता?है. यह छोटे आकार व कोमल शरीर वाला होता?है. इस की अवयस्क (पंखरहित) व वयस्क (पंख वाले) दोनों अवस्थाएं फसल को नुकसान पहुंचाती?हैं. ये पौधों के कोमल तनों, पत्तियों व फूलों से रस चूस कर उन का विकास रोक देते हैं. जिन स्थानों पर मोयला बैठता?है, वहां एक प्रकार का लसीला व शहद जैसा पदार्थ अपने शरीर से निकाल देता?है. इस से बाद में फफूंद रोग हो जाता?है. इस कीट की पंख वाली अवस्था बीमारियों को भी फैलाती है.

पर्णजीवी : यह कालेपीले रंग का बहुत छोटा कीट होता है. इस के 6 पैर होते?हैं. इस के पंख रोएंदार या झालरदार होते हैं. इस कीट के शिशु और वयस्क दोनों ही कोमल व नई पत्तियों के निचले भाग से हरा पदार्थ खुरच कर उन का रस चूसते हैं, जिस से पत्तियों पर छोटेछोटे सफेद या भूरे निशान बन जाते?हैं और पत्तियां सिकुड़ जाती हैं.

बरूथी : बहुत छोटे 8 पैरों वाले ये कीट आमतौर पर नजर नहीं आते हैं. ये मकड़ी नाम से?भी जाने जाते?हैं. ये पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं. इन के लगातार रस चूसने से पत्तियों पर सफेद निशान बन जाते हैं. इन की वजह से पौधों पर फलों की संख्या घट जाती हैं.

हरा तेला : यह फुदकने वाले छोटे व मध्यम आकार के हरे रंग के कीट पत्तियों की निचली सतह पर रहते?हैं ये पत्ती पर तिरछा चलते हैं. इन के शिशु व वयस्क दोनों ही पौधों से रस चूस कर उन्हें कमजोर बना देते हैं. ये कीट विषाणु रोग भी फैलाते हैं.

फलछेदक : इस कीट की लटें फलों में छेद बना कर अंदर घुस कर फलों को खाती?हैं. इन के असर से फल सड़ जाते हैं. इन से उत्पादन में कमी के साथसाथ फलों की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है. यह कीट मिर्च के अलावा कपास, टमाटर व चना वगैरह को भी नुकसान पहुंचाता है.

इलाज

* पौधशाला (नर्सरी) में पौधों को सफेद नायलोन जाली से ढक कर रखें.

* रसचूसक कीटों से बचाव के लिए 10 पीले चिपचिपे पाश (ट्रैप) प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें.

* परभक्षी कीट क्राइसोपरला कारनिए के 2 ग्रब प्रति पौधे की दर से खेत में छोड़ने का इंतजाम करें.

* फलछेदक कीटों से बचाव के लिए 5 फेरोमोन पाश प्रति हेक्टेयर के हिसाब से इस्तेमाल करें.

* बेसीलस थूरिनजिएंसिस नामक जीवाणु का 1.5 लीटर घोल प्रति हेक्टेयर की दर से पानी में मिला कर छिड़काव करने से फलछेदक कीटों से बचाव होता?है.

* ट्राइकोग्रामा ब्रोसिलिएंसिस या ट्राइकोग्रामा किलोनिस अंड परजीवी को खेत में 50000 अंडे प्रति हेक्टेयर की दर से छोड़ें. यह परजीवी फलछेदक कीटों के अंडों में अपने अंडे देता?है, जिस से फलछेदक कीट के अंडे नष्ट हो जाते?हैं.

* न्यूक्लियर पालीहाइड्रोसिस वाइरस (एनपीवी) के 250 एलई का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से फूलन से फलन तक 3 बार छिड़काव करने से फलछेदक कीट को कम किया जा सकता?है.

जैव आधारित कीट रोकथाम

मिर्च की फसल में खास नाशी कीटों व लीफ कर्ल के इलाज के लिए 30 व 40 दिनों की फसल अवस्था पर आवश्यकतानुसार एजाडियरेक्टिन (0.03 फीसदी ईसी) 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ वर्टिसीलियम मित्र फफूंद 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का छिड़काव करें. दूसरा छिड़काव 50 दिनों की फसल अवस्था पर केवल वर्टिसीलियम फफूंद 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का करें. अंतिम 2 छिड़काव 70 व 90 दिनों की फसल अवस्था पर स्पाइनोसेड 45 एससी 200 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से पर्याप्त पानी में घोल कर करें.

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