भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली ने 1 अप्रैल, 2019 को अपना स्थापना दिवस मनाया. यह एक दिन का उत्सव था जो 4 अलगअलग सत्रों में चला. इस मौके पर डाक्टर पीके मिश्रा, प्रधान सचिव (प्रधानमंत्री कार्यालय), डाक्टर त्रिलोचन महापात्रा, सचिव डेयर और डीजी, आईसीएआर की मौजूदगी में आईएआरआई में कृषि नवाचार केंद्र की आधारशिला रखी.

डाक्टर एके सिंह, डीडीजी (ऐक्सटैंशन) और निदेशक, आईएआरआई, डाक्टर जेपी शर्मा, संयुक्त निदेशक (ऐक्सट्रीम), डाक्टर एके सिंह, संयुक्त निदेशक (आरईएस) और?डाक्टर रश्मि अग्रवाल, डीन और संयुक्त निदेशक (शिक्षा) भी इस मौके पर मौजूद थे.

पहले सत्र के दौरान संस्थान में चित्रकला और वादविवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया गया, जिन में 13 स्कूलों के 130 बच्चों ने हिस्सा लिया. इस प्रतियोगिता का विषय ‘स्वच्छ भारत’ था. संस्थान में स्थापना दिवस में इस मौके पर दिल्ली प्रैस के प्रतिनिधि भी वहां मौजूद थे जिन्होंने प्रतियोगिता में?भाग लेने वाले सभी बच्चों को बच्चों की पसंदीदा पत्रिका ‘चंपक’ बांटी और साथ में वहां मौजूद किसानों को भी खेतीकिसानी की पत्रिका ‘फार्म एन फूड’ वितरित की गई. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डाक्टर पीके मिश्रा ने विजेताओं को पुरस्कार दिए.

स्वागत भाषण में?डाक्टर एके सिंह ने कहा कि यह संस्थान 114 वर्षों से कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में और कृषि शिक्षा में बेहतर भूमिका निभा रहा?है. उन्होंने खेतों और बागबानी फसलों की अच्छी उपज देने वाली किस्मों के विकास में आईएआरआई की भूमिका पर जोर दिया.

डाक्टर पीके मिश्रा ने भी आईएआरआई की भूमिका की प्रशंसा की. उन्होंने हरित क्रांति में योगदान के लिए वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि आईएआरआई की यह विरासत देश के हित में होने वाले अनुसंधानों को और आगे बढ़ाए ताकि भारत भूख और कुपोषण से लड़ने में सक्षम हो सके. संरक्षण कृषि और जलवायु परिवर्तन के शमन पर किए जा रहे कामों के बारे में रोशनी डाली. उन्होंने कहा कि यह संस्थान किसानों, सरकार और अन्य लोगों की उम्मीदों को पूरा करेगा.

कार्यक्रम के दूसरे सत्र में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किसानों के अनुभवों को साझा किया गया. किसानों के लिए इस शानदार सत्र की शुरुआत संयुक्त निदेशक (ऐक्सटैंशन) डाक्टर जेपी शर्मा ने की. मंच पर पद्मश्री से सम्मानित किसानों में कंवल सिंह चौहान, सुलतान सिंह, भारत भूषण?त्यागी, हुकुमचंद पाटीदार और राम शरण वर्मा अधिकारियों के साथ मौजूद थे. उन्होंने अपने संघर्षों, अनुभवों और उपलब्धियों को दूसरे लोगों के साथ साझा किया.

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कार्यक्रम का तीसरा सत्र डाक्टर शेखर सी. मांडे, महानिदेशक, सीएसआईआर और सचिव डीएसआईआर, जीओआई द्वारा प्रस्तुत किया गया था. डाक्टर सी. मांडे ने अनुसंधान और विकास के?क्षेत्र में अपने अनुभव और उपलब्धियों को साझा किया.

इस सत्र के दौरान प्रशासनिक, तकनीकी और सहायक कर्मचारियों की प्रत्येक श्रेणी में 2 कर्मचारियों को आईएआरआई बैस्ट वर्कर अवार्ड भी दिए गए. कार्यक्रम का समापन पूसा इंस्टीट्यूट लेडीज एसोसिएशन (पीआईएलए) के सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए गए मनोरंजक

व सांस्कृतिक कार्यक्रमों की एक शृंखला के साथ हुआ.

कामयाब किसानों की कहानी उन्हीं की जबानी

कंवल सिंह चौहान : अटेरना, सोनीपत, हरियाणा के रहने वाले कंवल सिंह चौहान ने बताया कि उन्होंने साल 1978 में खेती की शुरुआत की. वे एमए, एलएलबी भी हैं. उन्होंने बताया ‘‘मेरा रुझान राजनीति में भी रहा. 1982 में मैं ने युवाओं को इकट्ठा करने का काम किया और समाज में फैली बुराइयों के खिलाफ आंदालेन भी चलाया. गांव में सरपंच का चुनाव भी लड़ा जिस में 2 बार जीत हासिल की.’’

उन्होंने आगे बताया ‘‘पहले हम धान की खेती करते थे लेकिन 1980 में उस में बीमारी आने लगी. फिर मैं ने बायोगैस प्लांट लगाया. चावल की मिल भी लगाई लेकिन कामयाबी नहीं मिली. उस के बाद 1998 में बेबीकौर्न की जैविक खेती शुरू की. मछलीपालन, मशरूम उत्पादन का भी काम किया, जिस में अनेक मजदूरों को रोजगार मिला.

‘‘आज देश में खेती को?घाटे का सौदा समझा जाने लगा है, लेकिन ऐसा नहीं?है. हरियाणा के किसान इस के उदाहरण?हैं. आज हमारे अटेरना गांव के किसान बेबीकौर्न की खेती कर लाखों रुपए कमा रहे?हैं. यहां बेबीकौर्न की खेती की शुरुआत मैं ने ही की थी और इस में फायदा देख बाकी किसान भी इस की खेती करने लगे.’’

कंवल सिंह चौहान ने बताया कि किसानों ने अपने प्रयास से किसान समिति का गठन किया और अपनी फसल को सब्जी मंडी में न बेच कर खुद ही पैकिंग कर सीधे ग्राहक तक पहुंचा रहे?हैं जिस में दिल्ली और आसपास के बड़े होटलों में सप्लाई भी की जाती?है.

हुकुमचंद पाटीदार : गांव मानपुरा, जिला झालावाड़, राजस्थान के हुकुमचंद पाटीदार जैविक खेती की मिसाल हैं. उन्होंने कहा कि देश में औद्योगिक क्षेत्र को नजर में रख कर नीतियां बनीं, न कि किसानों को ध्यान में रख कर. किसान प्रकृति से दूर होते चले गए, पशुपालन और पारंपरिक खेती खत्म होने लगी. 60 के दशक में हरित क्रांति की शुरुआत हुई, उस के बाद अन्न की पैदावार तेजी से बढ़ने लगी, अनाज गोदामों में सड़ने लगा. इन गोदामों में अनाज को लंबे समय तक स्टोर करते समय अनेक गैसें भी पैदा होती हैं. बाद में इसी अनाज को 1-2 रुपए किलो के हिसाब से राशन में गरीबों को बांटा जा रहा है. यह कम कीमत में मिलने वाला जहर है जिस से कैंसर जैसी अनेक बीमारियां हो रही हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘‘मैं मानता हूं, देश को अन्न की जरूरत भी है, लेकिन सुधार की भी जरूरत?है. हमारा पर्यावरण बहुत प्रदूषित है. देश में दूध की खान हैं, पर वह हाईवे पर फैल रहा?है. इस के लिए एक ऐसा आधुनिक मौडल तैयार हो जो पूरी तरह स्वास्थ्यवर्धक हो.’’

उन्होंने आगे बताया, ‘‘मैं ने साल 2004 से जैविक खेती की शुरुआत की. पर शुरुआती दौर में बहुत दिक्कतें आई, लोगों के उलाहने मिले. परंतु हम ने हार नहीं मानी और हमें इस में सफलता मिली. 2012 में हमारे इस मौडल का जिक्र फिल्म अभिनेता आमिर खान ने भी टीवी चैनल शो ‘सत्यमेव जयते’ में भी किया.’’

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हुकुमचंद पाटीदार का कहना?है कि किसान प्रकृति के अनुरूप खेती करें तो उन्हें जरूर सफलता मिलेगी. नीम, अमलताश जैसे पेड़ों को खेतों की मेंड़ पर लगाएं. औषधीय पौधों की खेती करें. पशुपालन पर जोर दें.

अंत में उन्होंने कहा कि ‘जैसा खाएगा अन्न, वैसा बनेगा मन’ इसलिए हमें अच्छा उगाना है, अच्छा खाना है.

राम शरण वर्मा : बाराबंकी, उत्तर प्रदेश के रहने वाले किसान राम शरण वर्मा ने बताया कि वह केवल 10वीं जमात तक पढ़े हैं. उन्होंने साल 1986 से एक एकड़ जमीन से खेती की शुरुआत की जो अब बढ़ कर 150 एकड़ पर खेती कर रहे हैं. साल 1990 में टिश्यू कल्चर केले की शुरुआत की. इस के अलावा वे टमाटर, मेंथा (जापानी पुदीना) की भी खेती कर रहे हैं.

केले की फसल के बारे में उन्होंने बताया कि यह हम जुलाई में लगाते?हैं. एक पेड़ पर 100 रुपए का खर्च आता है जिस से आमदनी बहुत अच्छी मिलती है. केले की बड़ी मार्केट दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में हैं.

मेंथा के बारे में उन्होंने बताया कि हम मेंथा की कोशी वैरायटी लगाते हैं जिस पर एक एकड़ में 15-20 हजार रुपए का खर्च आता है. फसल तैयार होने पर 60 किलोग्राम मेंथा औयल निकलता है. यह 3 महीने की फसल होती है जो जून के पहले हफ्ते में काटने लायक हो जाती है. उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि अगर किसान फसल चक्र के साथ खेती करें तो उन्हें अच्छा फायदा मिलेगा.

आखिर में उन्होंने बताया कि इस समय वे 200 एकड़ जमीन पर खेती कर रहे?हैं जिस में अनेक तरह की फसलें उगाते हैं. सालभर में हम तकरीबन 25,000 लोगों को रोजगार देते हैं जिस में 300 से 400 रुपए मजदूरी दी जाती है.

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