हर दिन के खाने में अकसर शामिल रहने वाली सब्जी लौकी अपनेआप में खूबियों की खान होती है. इसे सारे साल तमाम घरों में बेहद चाव से खाया जाता है. मरीजों के लिए तो यह खासतौर पर मुफीद होती है. इसी वजह से कुछ नकचढ़े किस्म के लोग इसे मरीजों की तरकारी करार दे कर खाने से इनकार भी कर देते हैं. चूंकि लौकी पचने में आसान होती है, लिहाजा इसे पीलिया जैसे रोगों के मरीजों तक को खूब खिलाया जाता है, पर इस का मतलब यह नहीं है कि सामान्य स्वस्थ लोगों के लिए यह बेकार है. सेहतमंद लोग भी लौकी के कोफ्ते, लौकी की खीर व लौकी की बरफी वगैरह चाव से खाते हैं.  आमतौर पर लंबी छरहरी लौकियां तो हर जगह बहुतायत में पाई जाती हैं, मगर निहायत खूबसूरत गोल व लट्टू जैसे आकार की लौकियों की अलग ही शान होती है. इन सुंदर लट्टू के आकार वाली व गोल लौकियों के अंदरूनी गुण तो लंबी लौकियों जैसे ही होते हैं, पर इन का हुस्न लाजवाब होता है. गोल व लट्टू लौकियों की खेती भी लंबी लौकियों की खेती की तरह ही की जाती है.

माकूल हालात

जहां गरम सूखा मौसम हो और उम्दा धूप निकलती हो, वहां लौकी के अंकुरण के लिए 25 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान सही होता है. इस की सामान्य बढ़वार के लिए 25 से 30 डिगरी सेंटीग्रेड तापमान ठीक होता है. 30 डिगरी सेंटीग्रेड से ज्यादा तापमान होने पर नर फूलों की तादाद में इजाफा होता है और मादा फूलों की तादाद घटती है.

बीज और बोआई

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