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‘फिर अब आप क्यों आये हैं? आप क्यों यह बातें मुझे बता रहे हैं? क्या आप आशीष को वापस पाना चाहते हैं? या उसे यह सब बता देना चाहते हैं? प्लीज ऐसा मत करिएगा...’ संजीव की आवाज थरथराने लगी.

डॉ. अभय तुरन्त उठ कर उनके पास आये और उसके कन्धे पर हाथ रख कर वहीं सोफे पर बैठ गये, बोले, ‘अरे,  नहीं, नहीं... आप मुझे गलत समझ रहे हैं. मैं सिर्फ अपने दिल के हाथों विवश होकर कल रागिनी की तेरहवीं में आया था. मन में यह इच्छा भी थी कि इस बहाने से एक नजर अपने बेटे को देख सकूं. सो देख लिया.  मेरा उस पर कोई अधिकार नहीं है, आपने उसको पाला है, उसे प्यार दिया है, उसका भविष्य बनाया है, वह आपका ही है और हमेशा रहेगा. मैं तो बस एक चाह लेकर आया था आपके पास...’

‘कैसी चाह?’ संजीव ने जल्दी से पूछा.

‘संजीव, मैंने शादी नहीं की है और न ही मेरी सम्पत्ति का भारत में कोई वारिस है. पुराने शहर में मेरा जो अस्पताल और घर है, वह मैं आशीष के नाम करना चाहता हूं. आशीष डॉक्टर बनने वाला है, यह मैं जानता हूं. मुझे उम्मीद है तुम इसके लिए न नहीं कहोगे. मैं अपनी विल बनाकर तुमको दे जाऊंगा. तीन साल बाद मैं अमेरिका अपनी बड़ी बहन के पास शिफ्ट हो जाऊंगा. मैं वहां एक मेडिकल कॉलेज में पढ़ाने की इच्छा रखता हूं. अब यह तुम्हारे ऊपर है कि तुम कब और कैसे आशीष को इस विल के बारे में बताओ.’

संजीव यह सब सुन कर सन्न बैठे थे. उनको समझ में ही नहीं आ रहा था कि इस औफर को वह सौगात समझें या मुसीबत. वह क्या कहेंगे आशीष से कि अभय उसका कौन है? क्यों वह अपनी करोड़ों की प्रॉपर्टी आशीष को दे रहा है? क्या आशीष यह सब जान कर सहज रह पाएगा? कहीं वह मुझसे दूर तो नहीं हो जाएगा? कहीं वह अपने असली पिता के साथ रहने की जिद तो नहीं कर बैठेगा? अगर ऐसा हुआ तो मेरा क्या होगा? बुढ़ापे में मैं बिल्कुल अकेला हो जाऊंगा... यह सब सोच कर संजीव कांप उठे.

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