कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘मैं जानना चाहूंगा कि इस ठेके  को पाने...’’

रमाकांत बोले तो राजीव उन की बात काटते हुए बोला, ‘‘औफिस के इन चक्करों में फंस कर अपने दिमाग और स्वास्थ्य पर अब और जोर मत डालिए, पापा,’’  हस्ताक्षर करे कागज रमाकांत के सामने से उठा कर राजीव उन से रूखे स्वर में बोला, ‘‘आप ने मु?ो ट्रैंड कर दिया है. अब मु?ो अपने हिसाब से काम करने दीजिए. अब आप आराम कीजिए. हां, वक्त से दवा लेना मत भूलना. मैं चलता हूं.’’

बीमारी के कारण रमाकांत को औफिस गए 2 महीने हो चुके थे. पहले राजीव उन के आदेश के बिना कोई कदम नहीं उठाता था. आज उन का बेटा उन्हें ऐसा एहसास करा गया था मानो रमाकांत द्वारा बनाई गई कंपनी में अब उन की कोई जरूरत ही नहीं रह गई थी.

नहानेधोने के बाद रमाकांत अपने कमरे से बाहर आए तो उन के कानों में टैलीविजन चलने की ऊंची आवाजें पहुंचीं. साथसाथ उन के 9 वर्ष के पोते राहुल के हंसने का स्वर भी उन्हें सुनाई पड़ा. ये आवाजें उन के बहूबेटे के कमरे से आ रही थीं.

‘‘राहुल, आज तुम स्कूल क्यों नहीं गए?’’ अपने बेटे के शयनकक्ष में पहुंच कर रमाकांत ने गुस्से से पूछा.

राहुल अपनी मां संगीता के पास बैठा टैलीविजन पर कोई कार्टून फिल्म देख रहा था. रमाकांत की कड़कती आवाज सुन कर वे दोनों चौंक उठे. राहुल घबरा उठा जबकि संगीता के चेहरे पर वैसा कोई भाव पैदा नहीं हुआ.

‘‘हमें इस का माथा गरम लगा था, इसीलिए इसे स्कूल नहीं भेजा,’’ संगीता ने नाखुश से अंदाज में जवाब दिया.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...