एकदम से अचानक सब बदल गया. रमाकांत को ऐसा लग रहा था मानो आसमान से उन्हें जमीन पर पटक दिया हो. अपने मानसम्मान पर ठेस वे कैसे बरदाश्त कर सकते थे...
मनाली में एक माह स्वास्थ्य लाभ करने के बाद रमाकांत दिल्ली लौटे थे. अगले दिन कुछ ऐसी घटनाएं हुईं जिन के कारण उन के मन को गहरी चोट लगी थी.
उन की पत्नी शारदा उन के लिए सुबह की चाय बना कर लाई. उन्होंने पहला घूंट भरा तो पाया कि चाय लगभग फीकी थी. ‘‘शारदा, तुम चाय में चीनी डालना भूल गई हो,’’ रमाकांत की आवाज में शिकायत के भाव थे.
‘‘मैं ने जानबू?ा कर चीनी कम डाली है. शुगर के मरीज को चाय फीकी ही पीनी चाहिए,’’ शारदा ने तीखे लहजे में जवाब दिया. ‘‘लेकिन फीकी चाय मैं पी नहीं सकता,’’ रमाकांत बोले.
‘‘आदत डालने से, आप से खूब पी जाएगी ऐसी चाय,’’ शारदा ने कहा.‘‘मु?ो नहीं डालनी ऐसी आदत. जाओ, चीनी ले कर आओ,’’ रमाकांत नाराज हो उठे.
‘‘मैं तुम्हारी सुनूं या डाक्टर का आदेश मानूं?’’ शारदा भी गुस्से से भर उठी.‘‘तुम चीनी नहीं लाओगी तो मैं यह चाय नहीं पीऊंगा,’’ रमाकांत ने प्याला साइड टेबल पर ?ाटके से रख दिया.
‘‘वह तुम्हारी मरजी है, पर मैं गलत काम में तुम्हारी भागीदार नहीं बनूंगी,’’ कह कर शारदा पैर पटकती उन के कक्ष से बाहर निकल गई.
अपने साथ शारदा की बातें करने का ऐसा नया अंदाज रमाकांत को बहुत बुरा लगा. उन की पत्नी की पहले कभी ऊंचे स्वर में उन से टेढ़ा बोलने की हिम्मत नहीं हुई थी. उन का मूड पूरी तरह से बिगड़ गया.