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‘‘आप ने शराब पी है?’’

‘‘हां, पी है तो क्या हुआ? हमारी क्लास में इसे बुरा नहीं समझा जाता. आइंदा इस बारे में कुछ नहीं कहना, न पूछताछ करना.’’

मुझे उस से ऐसे जवाब व लहजे की उम्मीद नहीं थी, पर मैं चुप रही. दूसरे दिन सुबह मेरा भाई, मेरी बहन और मोहल्ले की एक लड़की मेरे लिए नाश्ता ले कर आए. बहनभाई घर देख कर दंग रह गए. हम सब ने मिल कर नाश्ता किया. फिर मेरी बहन ने पूछा, ‘‘शाहनवाज भाई, अगर आप इजाजत दें तो बाजी को हम साथ ले जाएं?’’

शाहनवाज ने खुशी से इजाजत दे दी. मैं घर पहुंची तो औरतों की भीड़ लग गई. कोई कपड़े देखती तो कोई जेवर देखती. सब तारीफ करती रहीं, अम्मा खुश होती रही.

शाम को शाहनवाज को लेने आना था. अम्मा ने रात के खाने का अच्छा इंतजाम किया. रशीद ने सामान लाने का जिम्मा खुद उठा लिया. वह 3-4 आइटम खुद ही बाजार से ले कर आ गया. उस ने मुझ से कोई बात नहीं की, नजरें झुका कर देखता रहा.

जब शाहनवाज आया तो मोहल्ले के बच्चे उस की गाड़ी घेर कर शोर मचाने लगे. उन के लिए यह बड़ी चीज थी. यह देख कर शाहनवाज को गुस्सा आ गया. वह चीख कर बोला, ‘‘अब कभी इस चिडि़याखाने में नहीं आऊंगा. बडे़ बेहूदा बच्चे हैं, इस मोहल्ले के.’’

उसी वक्त रशीद भी आ गया. उस ने रशीद से हाथ मिलाने के बजाय उस का हाथ झटक दिया. शाहनवाज ने अब्बा से पूछा, ‘‘ये साहब कौन हैं?’’

अब्बा ने कहा, ‘‘बेटा ही समझो, बचपन से घर आताजाता है.’’

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