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रशीद वैसे तो हमारे घर अकसर आताजाता रहता था, पर जब से मैं बड़ी हुई थी, उस का आनाजाना बढ़ गया था. मैं स्कूल से आती तो वह गली में टहलता मिलता था. घर पर इंतजार कर रहा होता. अजीब इंसान था, न कभी बात करता न मेरी तारीफ करता. न नजर भर कर देखता पर उस के अंदाज बताते थे कि वह मुझ से मोहब्बत करता है. मेरे करीब रहने के लिए वह हर जतन करता, कभी बाजार जा कर अम्मा की दवाई ले कर आता, कभी अब्बा का कोई काम करता. कभी मेरी छोटी बहन को घुमा कर लाता, उसे किसी काम से इनकार नहीं था.

रशीद हमारे घर के करीब ही रहता था. उस की मोटर मैकेनिक की दुकान थी, जिस में उस के अलावा 2 कारीगर काम करते थे. आमदनी अच्छी थी. घर में किसी को उस के आनेजाने पर ऐतराज नहीं था. सभी उसे पसंद करते थे. वह बचपन से हमारे घर आता था. देखने में भी अच्छाखासा था. मैं 10वीं में 2 बार फेल हो चुकी थी, उम्र भी 18 हो गई थी. पर देखने में मैं खूबसूरत थी.

मेरे अब्बा एक औफिस में चपरासी थे. आमदनी कम थी, खर्चे ज्यादा थे. मैं एक अच्छे स्कूल में पढ़ती थी लेकिन छोटे भाईबहन सरकारी स्कूल में पढ़ते थे. मेरे स्कूल में बड़े घरों की लड़कियां पढ़ती थीं. उन के बीच रह कर मैं अपने घर की गरीबी भूल जाती और उन की तरह ही रहने की कोशिश करती. उन के घरों में जाती, उन के घरों में ऐशोआराम के सामान देख कर दंग रह जाती और सोचती कि पढ़लिख कर मैं भी किसी अमीर लड़के से शादी करूंगी.

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