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संपादकीय
प्रहरी
सुषमा के हाथ से कप ले कर विभा खामोशी से चाय पीने लगी. तपन पास आ कर बैठते हुए बोला, ‘‘चलो मां, तुम्हें कहीं घुमा लाते हैं.
भाग - 1
पति के संरक्षण की छाया पत्नी के लिए क्या महत्त्व रखती है, शायद सुषमा समझ नहीं पाई थी, तभी तो तपन का एक प्रहरी की तरह उस का रक्षाकवच बनना उसे खलता था. लेकिन आज विभा की बातों से उस की आंखों पर पड़ा नासमझी का परदा अपनेआप उठने लगा.
भाग - 2
सत्येंद्र की कटु आलोचना सुन कर विभा की आंखें भर आतीं, किंतु उस में गजब का धैर्य था. वह अच्छी तरह जानती थी कि इस स्थिति में वह उसे कुछ भी समझा नहीं पाएगी.
भाग - 3
मन ही मन इन विचारों में घिरी सुषमा का चेहरा विश्वास की आभा से जगमगा रहा था. आंखों में मानो प्यार के दीए जल उठे थे. बड़ी बेसब्री से वह तपन के आने की प्रतीक्षा कर रही थी.
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