कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

इस घटना के बाद मैं ने उन के प्रति अपना यही रुख बनाए रखा. किसी नापसंद व्यक्ति के साथ जब हम पहली बार दुर्व्यवहार करते हैं, हमारा अंतर्मन हमें कचोटता है पर बाद में वही दुर्व्यवहार हमारी आदत बन जाता है. जो व्यक्ति अब तक मजाक उड़ाने लायक लगता था, वह अब घृणा का पात्र बन गया.

उन का हाथ बांध कर खड़े होना, पान की पीक से हरदम सने हुए दांत, तेल चुपड़े बाल, उन की हर बात ही मुझे काट खाने दौड़ती. वे भी देर से ही सही पर मेरी बेरुखी ताड़ गए. अब उन का घर पर आना काफी कम हो गया. विवेक जब घर पर होते, तभी वे आते और मुझ से नाश्ते के अलावा कोई बात न करते. मैं ने राहत की सांस ली. वक्तबेवक्त का चायनाश्ता सब कुछ बंद हो गया.

उस रोज घंटी बजने पर जैसे ही मैं ने दरवाजा खोला, सामने रामलालजी को खड़ा पाया. पसीने से तर उन की काया देख कर मुझे सदा की भांति नफरत हो आई.

‘‘विवेक घर पर नहीं हैं,’’ कहते हुए मैं दरवाजा बंद करने को हुई. उन्होंने इशारे से मुझे रोकना चाहा. मैं ने मन ही मन उन्हें कोसते हुए पूरा दरवाजा खोल दिया.

‘‘भाभीजी, बच्चे कहां हैं?’’

‘‘स्कूल गए हैं, और कहां जाएंगे इस वक्त?’’ मैं ने लापरवाही से कहा.

उन्होंने एक गहरी सांस ली और बोले, ‘‘आप इसी वक्त मेरे साथ चलिए, भैया दुर्घटनाग्रस्त हो गए हैं.’’

सुनते ही मुझे गश सा आ गया. वे संभाल कर मुझे अंदर ले आए.

‘‘भाभीजी, आप घबराइए नहीं, उन्हें ज्यादा चोट नहीं आई है,’’ उन्होंने कहा पर मुझे उन की बात पर विश्वास नहीं हो रहा था. ऐसे समय तो लोग झूठ भी बोलते हैं. मौत की खबर तक छिपा जाते हैं.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...