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वैसे तो शायद मैं नहीं जाती पर विजय जा रहा है, इसलिए तुरंत हां कर दी.

विजय मेरे भैया का मित्र है. उस के पिताजी सरकारी ठेकेदार हैं. बहुत पैसे वाले हैं. विजय अपने मातापिता का एकलौता बेटा है. उस का हमारे यहां आनाजाना बहुत दिनों से है. वह बहुत ही हंसमुख स्वभाव का है. जब भैया की शादी हुई तो वह उन्हें सिनेमा दिखाने ले गया था. मैं भी साथ में गई थी. वह मेरी ही साथ वाली सीट पर बैठा था. फिल्म के दौरान उस ने कई बार मु झे छूने की कोशिश की और मैं ने उसे मना नहीं किया क्योंकि मु झे अच्छा लग रहा था.

एक दिन कालेज की छुट्टी जल्दी हो गई थी. ड्राइवर मु झे लेने नहीं आ पाया तो मैं घर जाने के लिए रिकशे में बैठ ही रही थी कि विजय आ गया और बोला, ‘रेणू, आज रिकशे में क्यों जा रही हो?’ मैं ने कहा, ‘ड्राइवर को पता ही नहीं कि कालेज की छुट्टी जल्दी हो गई, इसीलिए.’

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‘चलो, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं’, वह बोला.

पहले तो मैं सकुचाई फिर सोचा कि विजय कोई अजनबी तो है नहीं, अत: उस के साथ स्कूटर पर बैठ गई. इस तरह हम दोनों निकट आते चले गए.

एक दिन हम एक रैस्तरां में बैठे कौफी पी रहे थे कि उस ने अचानक कहा, ‘रेणू, तुम मु झे बहुत अच्छी लगती हो, मु झ से शादी करोगी?’

मैं इस के लिए बिलकुल तैयार नहीं थी. अत: घबरा गई तो वह मेरी घबराहट देख कर बोला, ‘यदि तुम्हें एतराज न हो तो मैं कमलकांत (मेरे भैया) से बात करूं?’

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