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इन पत्रों के सिलसिले ने विमला देवी के माथे पर अनायास ही बल डाल दिए. उन्होंने राकेश से पूछा, ‘‘पत्र कहां से आया है?’’

राकेश कंधे उचका कर बोला, ‘‘मुझे क्या मालूम? भाभी के किसी ‘पैन फ्रैंड’ का पत्र है.’’

‘‘ऐं, यह ‘पैन फ्रैंड’ क्या चीज होती है?’’ विमला देवी ने खोजी निगाहों से बेटे की तरफ देखा.

‘‘मां, पैन फ्रैंड यानी कि पत्र मित्र,’’ राकेश ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, जब मुकेश छोटा था तब वह भी बाल पत्रिकाओं से बच्चों के पते ढूंढ़ढूंढ़ कर पत्र मित्र बनाया करता था और उन्हें पत्र भेजा करता था,’’ विमला देवी ने याद करते हुए कहा.

‘‘बचपन के औपचारिक पत्र मित्र समय के साथसाथ छूटते चले जाते हैं. भाभी की तरह उन के लगातार पत्र नहीं आते,’’ कहते हुए राकेश ने बाहर की राह ली और विमला देवी अकेली आंगन में बैठी रह गईं.

सर्दियों के गुनगुने दिन धूप ढलते ही बीत जाते हैं. विभा ने जब तक चायनाश्ते के बरतन समेटे, सांझ ढल चुकी थी. वह फिर रात का खाना बनाने में व्यस्त हो गई. मुकेश को बढि़या खाना खाने का शौक भी था और वह दफ्तर से लौट कर जल्दी ही रात का खाना खाने का आदी भी था.

दफ्तर से लौटते ही मुकेश ने विभा को बुला कर कहा, ‘‘सुनो, आज दफ्तर में तुम्हारे भैयाभाभी का फोन आया था. वे लोग परसों अहमदाबाद लौट रहे हैं, कल उन्होंने तुम्हें बुलाया है.’’

‘‘अच्छा,’’ विभा ने मुकेश के हाथ से कोट ले कर अलमारी में टांगते हुए कहा.

अगले दिन सुबह मुकेश को दफ्तर भेज कर विभा अपने भैयाभाभी से मिलने तिलक नगर चली गई. वे दक्षिण भारत घूम कर लौटे थे और घर के सदस्यों के लिए तरहतरह के उपहार लाए थे. विभा अपने लिए लाई गई मैसूर जार्जेट की साड़ी देख कर खिल उठी थी.

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