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गृहप्रवेश
आखिरकर मोहिनी उज्जवल को छोड़कर स्पेन चली गई और उज्जवल को अपनी गलती का एहसास हो गया .
भाग - 1
सभी लोग पार्टी में मस्ती कर रहे थें लेकिन मैं घबराई मन से उज्जवल की तरफ देख रही थी.
भाग - 2
न कोई आरोप, न आंसू, न क्रोध. उज्ज्वल खामोश मुझे देखता रहा था. जहां तूफान की आशंका हो, वहां अश्रुओं की रिमझिम का भी अभाव रहा.
भाग - 3
किसी भी प्रेम और रिश्ते से ऊपर होता है मनुष्य का खुद के प्रति सम्मान और प्रेम. इसीलिए हर स्त्री को अपना आर्थिक प्रबंध रखना चाहिए. समय और रिश्ता बदलते देर नहीं लगती.
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