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मैं शीशे के सामने खड़ी हो कर अपनी कमी को देखने का प्रयास करती. मुझे लगता कि मेरी ही किसी भूल के कारण उज्ज्वल मुझ से दूर हो गया था. मैं मोहिनी से खुद की तुलना करती. खुद को उस से बेहतर बनाने का प्रयास करती. उज्जवल को हर संभव सुख देने का प्रयास करती. हमारे अंतरंग पलों को जीना, मैं ने कब का छोड़ दिया था. मेरा प्रयास मात्र उज्ज्वल का आनंद रह गया था. अपनी भावनाओं को दबा कर मैं खुद के प्रति इतनी कठोर हो गई थी कि  हमेशा खुद को जोखिमभरे कामों में उलझा कर रखते लगी. मानो ये सब कर के मैं उसे मोहिनी के पास जाने से रोक लूंगी.

मैं यह भूल गई कि एक रिश्ता ऐसा भी होता है जिस की डोर आप से इतनी बंधी होती है कि आप के मन की दलदल में उन का जीवन भी फिसलने लगता है. वह रिश्ता होता है, एक माँ और  संतान का. इस का अनुभव होते ही मैं समाप्त होने से पहले जी उठी.

एक शाम जब मैं विवाहेतर संबंध क्यों बनते हैं, पर आर्टिकल पढ़ रही थी, स्नेह मेरे निकट आ कर बैठ गया.

‘मां!’

‘हम्म,’ मैं ने उस की तरफ देखे बिना पूछा था.

‘आई मिस यू.’

मैं ने चौंक कर स्नेह को देखा, बोली, ‘क्यों बेटा?’

‘आप खो गई हो, अब हंसती भी नहीं. मैं अलोन हो गया हूं.’

दर्द के जिन बादलों को मैं ने महीनों से अपने भीतर दबा रखा था, वे फट पड़े और आंखें बरसने लगीं. जिस आदमी ने मेरे विश्वास और प्रेम को कुचलने से पहले एक बार भी नहीं सोचा, उस के लिए मैं अपने बच्चे और खुद के साथ कितना सौतेला व्यवहार करने लगी थी. मेरा मृतप्राय आत्मविश्वास जीवित हो उठा. मैं ने उस दिन मात्र स्नेह को ही नहीं, अपने घायल मैं को भी गले लगा लिया था.

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