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‘‘वैदेही, अभी समय लक्ष्य के आकाश पर उड़ान भरने का है, स्वप्नों को जीवन प्रदान करने का है. हृदय में यदि प्रेम है, तो वह सदा रहेगा. यदि यह समय के साथ धूमिल हो भी गया, तो उसे एक आसक्ति सम झ बिसार देना. हर स्थिति में मित्रता तो जीवित रहेगी ही.’’

भावनाओं की एक वेगवती नदी, जो बांध तोड़ कर बह रही थी, साहिल से मिलते ही शांत हो गई थी. वैदेही का हृदय इस पुरुष के शब्दों और उस के नेत्रों से बंध गया था. इस बंधन में भी स्वाधीनता का यह अनुभव नवीन तो था ही, सुभग भी था.

‘‘मित्रता तो सदा रहेगी, आलिम,’’ वैदेही के कपोलों का रंग सुर्खलाल हो गया था.

‘‘इस नवीन मैत्री की साक्षी यह कैंटीन रहेगी.’’ हंसते हुए आलिम खाने का और्डर देने चला गया था.

एक वर्ष में मित्रता का यह बीज अंकुरित हो गया था. उन दोनों ने एकदूसरे को बिना किसी शर्त स्वीकार कर लिया था. न कोई वादा, न किसी रिश्ते का बंधन और न ही कोई प्रतिज्ञा. अनकहे प्रेम की शक्ति वृहत होती है, उसे शब्दों की बैसाखी की आवश्यकता नहीं होती. उन का मौन ही संवाद होता है.

दोनों की पारिवारिक पृष्ठभूमि ही नहीं, व्यक्तित्व और आचरण भी भिन्न थे. जहां आलिम नास्तिक था, वहीं वैदेही की ईश्वर में अटूट आस्था थी. हर सुबह कालेज जाने से पूर्व वह 101 बार गायत्री मंत्र का पाठ करना नहीं भूलती थी. आलिम कभी उस की आस्था पर प्रश्न नहीं उठाता और न ही वैदेही उसे आस्तिक बनाने का प्रयास करती थी.

आलिम एक शाकाहारी था. आरंभ में मांसाहार का सेवन करता था किंतु उसे उस का स्वाद कभी पसंद नहीं आया. बचपन में जब अपने बाबा के साथ बकरे अथवा मुरगे का मांस लेने जाता, वह उन्हें कटता देख कर रो देता था. अपने पेट को भरने के लिए किसी जीव की हत्या करने का कारण उसे स्वार्थ लगने लगा था. वहीं, शाकाहारी परिवार में पलीबढ़ी वैदेही बटर चिकन की दीवानी थी. दोनों में से किसी ने भी कभी एकदूसरे के स्वाद पर भी सवाल नहीं उठाया. उन का मानना था, आदमी का आहार उस की पसंद का विषय है. आहार के आधार पर उस का वर्गीकरण करना मूर्खता है.

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