देवीप्रसाद के कहने पर आलिम को एक पेड़ से बांध दिया गया था. पीड़ा जब अंतहीन हो जाती है, वह मनुष्य को शक्ति प्रदान कर देती है. आलिम के शरीर का हर अंग दर्द में था, लेकिन उस के हृदय और उस की जान को वे तनिक भी चोट नहीं पहुंचा पाए थे.
मानव की उत्पति के स्वाभाविक से प्रश्न का उत्तर शातिर लोगों ने कपोलकल्पित कहानियों के जरिए एक ईश्वर गढ़ लिया और फिर दुकानदारी बढ़ाते हुए उस कपोलकल्पित ईश्वर के एजेंटों की एक लंबी सूची तैयार कर ली गई. हर दुकानदार ने अपने ग्राहकों को उल झाया और मतिभ्रम कर उस का अपना खुद का वजूद उस नितांत कल्पित ईश्वर के मौजमस्ती करने वाले दुकानदारों के आगे सूक्ष्म कर डाला.
लेकिन आज तक एक प्रश्न उस के अंतर में संशय बन विराजमान है और वह प्रश्न है, इस ‘धरा पर जीवन की उत्पति’. इस एक प्रश्न ने ईश्वर जैसी किसी शक्ति के होने के संयोग पर मुहर लगा दी. कोई ईश्वर इस ब्रह्मांड का रचनाकार नहीं है, किंतु, शातिर मनुष्य कपोलकल्पित ईश्वर का रचनाकार है, यह निर्विवाद है. धर्म कोई भी हो, प्रार्थना की शैली भले ही भिन्न हो, आराध्य का रूप भी भिन्न हो, किंतु उस आराध्य, उस के विचारों तथा प्रार्थना की शैली को लोगों के मध्य स्थापित करने वाला मनुष्य ही था.
सभी धर्मों का मार्ग स्वर्ग में बैठी उस शक्ति तक जाता है जिस ने, उन के मतानुसार, यह सृष्टि बनाई तथा फिर सुदूर जा बैठा. एक प्रश्न यह भी है कि, उस ने इस संपूर्ण ब्रह्मांड में मात्र पृथ्वी को मनुष्यों के लिए बनाया, अथवा अन्य ग्रहों पर भी वह पूजनीय है. हालाकि धार्मिक ग्रंथ ईश्वर की सत्ता का संपूर्ण ब्रह्मांड में होने का दावा करते हैं किंतु विज्ञान अभी दूसरे ग्रहों पर जीवन के होने की पुष्टि नहीं कर पाया है. दूसरे ग्रहों की तो छोडि़ए, इसी पृथ्वी के पशुपक्षी इस ईश्वर की कल्पना के शिकार नहीं हैं.