देशभर में मकानों की कीमतें बढ़ने और उन के मालिकों की उम्र बढ़ने के कारण मालिकों के बच्चों में एक फ्रस्ट्रेशन पैदा होने लगी है. पहले जब मातापिता की मृत्यु 45 से 60 के बीच हो जाती थी, 30-35 तक बच्चों को मिल्कीयत मिल जाती थी पर अब यह ट्रांसफर अब मातापिता जब 70-80 के हो जाते हैं तब हो रहा है और तब तक बच्चे 50-55 के हो चुके होते हैं. इसीलिए शायद दिल्ली में एक 25 वर्षीय तलाकशुदा महिला ने अपने प्रेमियों की सहायता से मातापिता दोनों को मार डाला ताकि क्व50 लाख का मकान हाथ में आ जाए.

अब चूंकि वह पकड़ ली गई है उसे पूरी जिंदगी जेल में बितानी होगी और 50 लाख का मकान खंडहर हो जाएगा जिस पर लाखों का म्यूनिसिपल टैक्स चढ़ जाएगा. जब तक वह महिला बाहर निकलेगी तब तक वह टूट चुकी होगी और मकान भी टूट चुका होगा.

असल में जरा से निकम्मे बच्चे अब अपना धैर्य खो रहे हैं. अगर मातापिता अपने कमाए पैसे पर बैठते हैं तो सही करते हैं. उन्होंने जो भी कमाया होता है अपनी मेहनत से, अपना पेट काट कर या विरासत में मातापिता के मरने के बाद पाया होता है. अगर वे बच्चों को अपने मरने से पहले पैसा खत्म करने देंगे तो खुद तिलतिल कर मरेंगे. बुढ़ापे में कई बीमारियां होती हैं, वकीलों के खर्च होते हैं, लोग छोटीमोटी लूट मचाते रहते हैं.

बच्चों की नाराजगी सहना ज्यादा अच्छा बजाय उन के आज के सुखों के लिए अपना भविष्य गिरवी रखने के. जो बच्चे कमाने लगते हैं वे तो मातापिता की संपत्ति पर नजर नहीं रखते पर जिन्हें एक के बाद एक असफलता हाथ लगती है वे अगर नाराज भी हो जाएं तो भी चिंता नहीं करनी चाहिए.

पिछले दशकों में संपत्ति के जो अंधाधुंध दाम बढ़े हैं उन से बच्चों को लगने लगा है कि बूढ़ों के पास बहुत पैसा आ गया है पर वे यह भूल जाते हैं कि यही पैसा जीवन में सुरक्षा देता है, ठहराव पहुंचाता है. दिल्ली के पश्चिम विहार की देवेंद्र कौर की जल्दबाजी उसे ले डूबेगी.

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