देश की जनता को सरकार पर इतना ज्यादा अविश्वास है कि वह सरकार से अपने लेनदेन हरगिज शेयर नहीं करना चाहती. सरकार कंप्यूटर तकनीक का इस्तेमाल कर के औनलाइन फाइलिंग, पैन कार्ड, आधार कार्ड, कैश की जगह बैंक से लेनदेन पर जितना जोर दे रही है उतना ही लोग अपना कैश संभाल कर रख रहे हैं और नए आंकड़ों के अनुसार, लोगों ने मकानों व सोने में पैसा लगाना बंद कर दिया है. एंबिट कैपिटल नाम की कंपनी ने बताया है कि इस बार 53 साल बाद पहली बार बैंकों में जमा होने वाली राशि की वृद्धि 10 प्रतिशत से भी कम रह गई. यानी लोगों को भरोसा नहीं है कि खातों में रखा गया बैंकों में पैसा उन्हें वापस मिलेगा भी.

सरकार ने बड़ेबड़े विज्ञापन दे कर जनधन योजना को शुरू किया था पर उस के बावजूद, लोगों ने क्रैडिटडैबिट कार्डों में भरोसा करना कम कर दिया और उन की वृद्धि दर एकतिहाई रह गई है. बैंक अब क्रैडिट कार्डों पर छूट देना भी बंद कर चुके हैं और मोबाइल व क्रैडिट कार्ड बेचने के लिए पिनपिनाते नहीं हैं. बड़ी रकमें जो बैंकों से इधर से उधर भेजी जाती थीं उन की वृद्धि भी 15 प्रतिशत सालाना से घट कर 7 प्रतिशत रह गई है. एंबिट कैपिटल का कहना है कि देश की 20 प्रतिशत अर्थव्यवस्था कालेधन पर चल रही है. असल में 2014 की भाजपा सरकार और 1950 की कांग्रेस सरकार में कोई ज्यादा फर्क नहीं है. तब भी और आज भी व्यापारी व पैसे वालों को गुनाहगार समझा जाता है. यह हमारे धर्मग्रंथों की देन है जो माया को मानव की मेहनत का परिणाम नहीं, मोह समझते हैं. ब्राह्मणवादी सोच के अनुसार, माया कमाने वाले के हाथ में नहीं, ईश्वर के एजेंटों के हाथों में रहनी चाहिए और 1947 के बाद की कांगे्रस और आज की भाजपा राजा को ईश्वरतुल्य समझती हैं.

आम व्यक्ति अपने पैसे को अपने पास रखना चाहता है. गरीब लोग पैसा जमीन में दबा कर रखते हैं और अमीर लोग तिजोरियों में. पहले जब कालाधन व्यापार व मकानों में लग रहा था तब लोगों ने खूब लगाया और अर्थव्यवस्था बढ़ी थी. लेकिन अब पंडिताई सोच के अनुसार, धन तो सरकारी खजाने में जाना चाहिए, इसलिए अब नकदी के रूप में रखा जा रहा है. सब जानते हैं कि अब पहले के हिंदू राजाओं की तरह पैसा या तो मंदिरों में लगाया जाएगा या यज्ञहवनों में स्वाहा कर दिया जाएगा. लोग अपनी मेहनत को पत्थरों में या लकडि़यों में नष्ट होते नहीं देखना चाहते, चाहे वे जितना तिलक लगाते हों. सरकार चाहे कहती रहे कि भारत की अर्थव्यवस्था सब से तेजी से बढ़ रही है पर ये आंकड़े वैसे ही भ्रामक हैं जैसे यह कहना कि हमारे पास पौराणिक युग में विमान थे और आदमी के सिर पर हाथी का सिर लगाने की सर्जरी की कला थी. झूठ बोलने में माहिर पौराणिकवादी, अर्थव्यवस्था को अर्थपुराण मात्र मानते हैं.

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