अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ही होंगे, यह पक्का हो गया है. डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका ने कैसे स्वीकार कर लिया है, यह अपने आप में पहेली है. हर तरह के गुनाह के आरोप लगे होने वाले धनवान शख्स को राष्ट्रपति पद के लिए मान लेना अमेरिका के विचारकों के लिए पहेली है. डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी जिद, सिरफिरेपन, अनापशनाप बोलने और अपने पैसे का भरपूर उपयोग कर के अमेरिका को भ्रमित कर दिया और अमेरिकियों ने एक अलोकतांत्रिक, असभ्य से व्यक्ति को राष्ट्रपति पद के लायक मान लिया है.

उन का मुकाबला डैमोके्रटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन से होगा. यह पक्का नहीं है कि हिलेरी जीतेंगी क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप अपने सिरफिरेपन के कारण अमेरिकियों पर छा गए हैं. डोनाल्ड ट्रंप ने वाइल्ड वैस्ट यानी अमेरिका के 16वीं सदी में अनजाने पश्चिमी उजाड़ इलाकों में जाने वाले हिम्मती युवाओं की तरह राजनीति में प्रवेश किया जो बातबात पर बंदूक निकाल लेते थे पर उन्होंने अमेरिका को पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फैला दिया. अमेरिकी जनता आज अपने वर्तमान व भविष्य को ले कर चिंता में डूबी है. एक तरफ घरेलू कर्ज उस पर चढ़ा हुआ है, दूसरी तरफ निवेश का भरोसा नहीं है. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अच्छी नीतियां बनाईं पर इतनी अच्छी नहीं कि अमेरिका पुरानी ऊंचाइयों को छू सके. इसलामिक स्टेट का खतरा सिर पर सवार है और डर लगता है कि कब, न जाने कहां आईएस का हमला हो जाए.

अमेरिका को चीन से भी बड़ी चिंता है कि कहीं वह नौकरियों के साथ उस की अर्थव्यवस्था को भी हड़प न कर जाए. उभरते देश लाखों नौकरियां ले जा चुके हैं. यूरोप में शरणार्थियों का बोझ कब अमेरिकियों के सिर पर न आ जाए, यह डर भी है. ऐसे में अमेरिका ऐसा नेता खोज रहा है जो कूटनीति में नहीं, धमकियों से बात करे. जो हर बात पर ‘सिर फोड़ देंगे’, ‘धक्के दे कर निकाल देंगे’, ‘पटक देंगे’, ‘भगा देंगे’ वाली भाषा बोले जो बहुतों को अच्छी भी लगती है.अमेरिकी वैसे ही थोड़े हिंसक हैं. हर घर में बंदूक रखने का वहां संवैधानिक अधिकार है. वहां की जेलें ठसाठस भरी हैं. वहां की सड़कें सुरक्षित नहीं हैं. लोग बड़ी गाडि़यों में चलते हैं शान बघारने के लिए.

वहां लोकतंत्र है, विचारों की स्वतंत्रता है, सभ्यता है, दुनियाभर के लोगों को पनाह मिलती है, कानून है, बिजलीपानी है पर विरोधाभास भी है. डोनाल्ड ट्रंप वैसे कट्टरवादियों की शह पर चमचमा रहे हैं जैसे 2014 से पहले भारत में नरेंद्र मोदी चमचमाए थे और रूस में जब व्लादिमीर पुतिन आए. डोनाल्ड ट्रंप अगर राष्ट्रपति बने तो अमेरिका शांति का दूत नहीं, धौंस का हथियार बन जाएगा. ऐसे राष्ट्रपति पहले नहीं हुए हैं पर इस बार अमेरिका शायद दबाव में ऐसा प्रयोग करना चाहता है.

भारत के लिए ट्रंप टेढ़े साबित होंगे. अपनेटेढ़ेपन को वे भारत के लोकतंत्र में नहीं, पाकिस्तान को कंट्रोल करने के लिए इस्तेमाल करेंगे. ट्रंप को अमेरिका में बसे भारतीयों से कोई प्रेम नहीं है. वे शायद कभी भारत आएं ही नहीं. वे राष्ट्रपति बने तो नरेंद्र मोदी को गले लगाते नजर नहीं आएंगे. वे केवल अपने से मतलब रखेंगे, जैसे ठेठ सेठ रखते हैं. मुनाफा कितना है किस काम में, यह सिद्धांत रह जाएगा अमेरिका का.

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