मई के विधान सभा चुनावों में जयललिता ने तमिलनाडु और ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल जीत कर दिखा दिया कि यदि मेहनत करने और सब कुछ बलिदान कर देने का जज्बा हो तो कोई भी जंग जीती जा सकती है और बारबार जीती जा सकती है वह भी अकेले, बिना पति, बेटों, रिश्तेदारों के. आमतौर पर औरतें इस बात से परेशान रहती हैं कि यदि पिता, पति या बेटा न रहा तो उन का क्या होगा. इन नेताओं ने साबित किया है कि अपनी जगह अपने बलबूते बनाई जा सकती है. राजनीति में ये 2 ही नहीं हैं, मायावती भी हैं, उमा भारती भी हैं, जिन के आगेपीछे कोई खास नहीं पर इन्होंने अपनी एक जगह बना रखी है, लाखों की चहेती हैं. जब ये अपना स्थान बना सकती हैं तो आम औरतें घर में हर समय मुहताज क्यों रहें?

असल में इस जाल को बुनने के लिए समाज ने सदियां लगाई हैं. हर मां को शिक्षा दी गई कि वह अपनी लड़की को संभाल कर रखे. उसे बिना परों की चिडि़या बना कर पिंजरे में रहने की आदत डाले. धर्म ने इस काम में बहुत योगदान दिया, क्योंकि पुरुषों की मनमानी धर्मभीरु औरतों पर ज्यादा चलती है. हर धर्म को ऐसे पुरुष चाहिए, जो आंख मूंद कर धर्मगुरु के आदेश पर जेब भी खाली कर दें और जान भी कुरबान कर दें. धर्मों ने औरतों को गऊ बना कर धर्म के गुलाम पुरुषों को दान में दे दीं पर ममता, मायावती और जयललिता ने इन परंपराओं को

पूरी तरह तोड़ा है. ये औरतें आत्मविश्वास की प्रतीक हैं और अगर आज की औरत को किसी को अपना आदर्श मानना चाहिए तो वे सीता, पार्वती, राधा, लक्ष्मी, वैष्णो या काली नहीं, बल्कि माया, ममता और जयललिता होनी चाहिए. यह जरूरी नहीं कि ये नेता जो कर रही हैं, उस का समर्थन करा जा रहा है. इन की नीतियां गलत भी हो सकती हैं, ये भ्रष्टाचार को पनपने देने वालों में भी हो सकती हैं, ये दलबदलू भी हो सकती हैं. ये जिद्दी भी हो सकती हैं पर जब भी जो भी करती हैं, इन्हें पिता, पति या बेटे से नहीं पूछना पड़ता. उन की इजाजत नहीं लेनी होती. ये अपने समर्थक खुद पैदा करती हैं, वे खुद पैसा जमा करती हैं, खुद अपने सहायकों को चुनती हैं और अकेले दम पर जोखिम लेती हैं. यदि 10 फीसदी औरतें भी इस तरह जुझारू हो जाएं तो समाज का स्वरूप बदल जाए. मंदिरों, चर्चों, मसजिदों के आगे लाइनें लगनी बंद हो जाएं. सड़कों पर लड़कियों को देखते ही सीटियां बजनी बंद हो जाएं. इन नेताओं ने बताया है कि शक्ति मर्दों की बपौती नहीं है. यह अपनेअपने व्यक्तित्व की देन है. इस पर अंकुश समाज, धर्म और परिवार लगाता है, प्रकृति नहीं.

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