अपनी जनता के सामने खुद को महाबली साबित करना मुश्किल काम नहीं अगर जनता के पास शासक के बारे में सच जानने का न तो जरिया हो और न सच बोलने वालों को कैद में न रख रखा हो. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जनता को जता रखा है कि वे न केवल महाशक्तिशाली हैं बल्कि बेहद लोकप्रिय भी हैं और दुनिया उन से थरथर कांपती है. यूक्रेन पर हमला उन्होंने उसी झोंक में किया जिस में वे नकली चुनावों के तहत 87.7 फीसदी वोटों से जीते थे. यूक्रेन पर उन का हमला नाकामयाब रहा है और ठीक उन की नाक के नीचे इसलामी कट्टरपंथी संगठन के 4 लड़ाकू मास्को के एक कंसर्ट हौल में घुस गए व गोलियों की बौछारों से और 133 लोगों को मार डाला.
महाबली पुतिन की शक्तिशाली गुप्तचर संस्था केजीबी, मास्को पुलिस, सेना सब देखते रह गए. पहले ऐसा ही कुछ यूक्रेन में भाड़े की फौज या कह लें रूस की प्राइवेट आर्मी वैगनर के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन ने किया था पर बाद में पुतीन ने उसे मरवा डाला. इसलामिक स्टेट का सीरिया स्थित गुट अपने को इस हमले का जिम्मेदार मान रहा है जबकि पुतिन किसी तरह यूक्रेन के वोलोदिमिर जेलेंस्की पर आरोप मढ़ना चाह रहे हैं.

आतंकवादी कहीं भी हमला कर सकते हैं क्योंकि वे जिंदा लौटने की तैयारी नहीं करते लेकिन मुसीबत उस शासक के लिए होती है जो शान ज्यादा बघारता है और उस चक्कर में अपनी जनता को बेमतलब के मामलों में उलझाए रखता है. एक विशाल सोवियत यूनियन फिर से बनने के सपने साकार होते देखने के लिए रूसियों का एक वर्ग पुतिन का अंधभक्त बना हुआ है और हाल यह है कि रूस को अब चीन, उत्तरी कोरिया, बेलारूस और दक्षिणी अमेरिका के कई छोटे देशों से सहायता मांगनी पड़ रही है.
रूसी जनता अब भी व्लादिमीर पुतिन की भक्त है और भक्ति की कोर्ई भी कीमत देने को वह तैयार भी है पर इस से देश न सुखी बनेगा, न जनता धनवान. आज रूस के पास लड़ाकों तक की कमी हो रही है और उस के एजेंट भारत जैसे देश से दुबलेपतले, मरियल से मजदूरों को बहका व बुला कर उन्हें मिलिट्री ड्रैस पहना यूक्रेन से जारी जंग में झोंक रहे हैं. वहीं, रूसी युवा, जो जानते हैं कि यूक्रेन से लडऩे की क्षमता रूस में नहीं बची, जबरन सेना में भरती किए जा रहे हैं.

मास्को के एक कंसर्ट हौल पर हमला निहत्थे, निर्दोषों पर हमला है पर यह हमेशा तब होता है जब शासक ज्यादा गरूर में छोर हो और न अपने लोगों की सुने और न दूसरे देशों की. अपनी जिद और अहंकार के मारे व्लादिमीर पुतिन जैसे सिरफिरे शासक दुनिया के कितने ही देशों में हैं. लोकतंत्रों में भी पैदा होते रहते हैं. अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप भी उन्हीं में से एक हैं. इन का खमियाजा आम जनता को या तो गोलियां खा कर भुगतना होता है या फिर ऐसी नीतियों को सह कर जिन से उन की कमाई को बुरी तरह चूसा जाए. रूसी लोग आज अपने युवाओं को खो रहे है और बेमतलब की लड़ाई में पैसा भी झोंक रहे हैं. रूस इतना अमीर नहीं है कि वह फैक्ट्रियों में काम कर सकने वाले युवाओं को गोलियां से मरवा सके और लोगों की जरूरत का सामान न बनवा कर फैक्ट्रियों से सैनिक सामान बनवा सके. एक शासक के सिरफिरेपन से 25 करोड़ रूसी ‘सजा’ काटने जैसी जिंदगी गुजार रहे हैं.

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