चुनावों में जब सभाओं और नुक्कड़ मीटिंगों में बहुतकुछ बोलना होता है तो नपेतुले शब्द नहीं रह जाते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह से अनापशनाप आरोप देशीविदेशी नेताओं पर लगा रहे हैं वह कोई आश्चर्य की बात नहीं. आश्चर्य की बात तो कांग्रेस नेता राहुल गांधी का वह कथन है जिस में उन्होंने, एक छोटी सभा में, कहा कि भारत के विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों को देख लो, सारे आरएसएस के नजर आएंगे.

आरएसएस कोई विधिवत संस्था नहीं है. यह एक पौराणिक सोच की वकालत करने वाली और उसे देश पर फिर से थोपने वाले लोगों को ढीलाढाला समूह है. इस के समर्थक शाखाओं में जाते या कभी गए हों, जरूरी नहीं लेकिन वे सभी पूजापाठी और वर्णव्यवस्था, पुनर्जन्म, देवीदेवताओं के प्रचार को शिक्षा का अहम हिस्सा मानते हैं. राहुल के बयान पर 200 वाइस चांसलरों ने आपत्ति की है तो लगता है कि राहुल गांधी ने मर्म पर चोट पहुंचा कर ठीक ही किया है.

ये वाइस चांसलर चाहे कितना कह लें कि उन का न आरएसएस से संबंध नहीं, वे आरएसएस द्वारा ही नियुक्त किए गए हैं और वे कर वही रहे हैं जो आरएसएस देश की शिक्षा के बारे में कराना चाहती है. थोड़ी सी खोज पर जो मिलता है वह स्पष्ट करता है कि देश के वाइस चांसलर नौलेज यानी ज्ञान को तथ्य व तर्क का समावेश नहीं, बल्कि पौराणिक कथाओं की जानकारी और मंत्रों की देन मानते हैं.

सरकारी सहायताप्राप्त संपूर्णानंद संस्कृत यूनिवर्सिटी के वाइस चासंलर प्रोफैसर बिहारी लाल शर्मा ने 9 अप्रैल, 2024 को हिंदू नववर्ष के मौके पर विश्वविद्यालय परिसर में एक यात्रा आयोजित कराई और उस में सम्मिलित हुए. जवाहरलाल नेहरू की वाइस चांसलर संतीश्री धुलीपटी पंडित ने 17, अप्रैल, 2024 के आसपास प्रैस ट्रस्ट औफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में कहा कि उन्हें गर्व है कि उन्हें संघी वाइस चांसलर कहा जा रहा है. वे आरएसएस से संबंधों को स्वीकार करती हैं.
अक्तूबर 2023 में केंद्र द्वारा नियुक्त राज्यपाल ने केरल के कलामंडल विश्वविद्यालय में अंनतकृष्णन को वाइस चांसलर नियुक्त किया जो पौराणिकता को फिर से देश के मन पर थोपने में विश्वास रखते हैं. यह वही सोच है जो आरएसएस की है.

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