बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराबबंदी लागू कर के एक बहुत बड़ा खतरा मोल ले लिया है चाहे इस से राज्य की जनता खासतौर पर औरतों को बहुत फायदा हो. शराबी न सिर्फ गरीब घरों की बहुत सारी आमदनी बोतल में बहा देते हैं, बल्कि वे घर में लड़ते हैं और पैसों के बदले बीमारियां खरीदते हैं. शराब कोई खाना नहीं है कि इस के बिना जीया नहीं जा सकता. शराब पीना लोग पेट से सीख कर नहीं आते. इस की आदत डलवाई जाती है. सदियों से यह काम हो रहा है. शराब बनाने में थोड़ी तकनीक की जरूरत होती है और इस जानकारी का फायदा ठेकेदार, शराब बनाने वाले, इस में पैसा लगाने वाले, पुलिस, हाकिम, नेता उठाते हैं. सदियों से यह राजाओं की जनता की जेब काटने की तरकीब रही है. आज सरकारों की है.

सरकारें कहती रहती हैं कि शराब न पीयो, पर पिलाने का पूरा काम करती हैं. जो विभाग शराबबंदी लागू करता है, वही ठेके भी देता है. शराब की बीमारियों का हल्ला मचाया जाता है, पर हर नुक्कड़ पर शराब मिल जाए, ऐसा पुख्ता इंतजाम किया जाता है. नीतीश कुमार की शराबबंदी ज्यादा दिन नहीं चल सकती. इस से टैक्स का नुकसान तो ज्यादा नहीं होगा, क्योंकि उतना ही पैसा अस्पतालों में घटते खर्च से बच जाएगा, पर बिचौलियों की बाढ़ नीतीश कुमार को न छोड़ेगी. अखबार वाले तो इस मामले में पहले नंबर के हैं. वे बढ़चढ़ कर खबर छापेंगे कि शराबबंदी से क्याक्या नुकसान हो रहे हैं. माफिया के हथकंडों को सुर्खियां बना कर कहा जाएगा. बीचबीच में जहरीली शराब पिलाई जाएगी, बिलकुल मुफ्त, और जब लोग मरेंगे तो नीतीश कुमार की शराबबंदी को दोष दिया जाएगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...