इस देश में गरीबी इसलिए नहीं हैं कि यहां के लोग आलसी हैं या यहां का मौसम खराब है. यहां गरीबी, भुखमरी या बीमारी इसलिए है कि यहां के राजा सदा जनता को बहकाते बहलाते रहे हैं और उस से मोटी रकम वसूल कर उसे भूखानंगा रखते रहे हैं. तानाशाही से आजादी के बाद उम्मीद जगी थी कि इस देश में बदलाव देखने को मिलेगा, पर 1947 के बाद से ही शासकों की ऐसी झड़ी लगी है, जिस ने लूट को पहले की तरह जारी रखा. हां, तकनीक की वजह से पैदावार ज्यादा हो रही है, पर लूट की मात्रा बढ़ गई है. जो चमकधमक दिख रही है, वह तकनीक का कमाल है. शासक तो पहले की तरह या तो मौजमस्ती में डूबे रहते हैं या पूजापाठ में. यमुना के किनारे, दिल्ली के बीच रविशंकर के तमाशे ने फिर जता दिया है कि इस देश की सरकारों को झूठे बहलाने वाले यज्ञहवनों की फिक्र ही ज्यादा है. कहीं कुंभ हो रहा है. कहीं मंदिरों के लिए एकड़ों जमीनें दी जा रही हैं, तो कहीं सेना को देश की सुरक्षा के लिए नहीं, बल्कि पूजापाठ की सुरक्षा के लिए लगाया जा रहा है.

इस से गरीबभूखे बीमारों को क्या मिलेगा? आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री ने विशाल यज्ञ किया तो केंद्र सरकार क्यों पीछे रहती. उस ने अपनी ‘दुश्मन’ दिल्ली सरकार के साथ मिल कर दिल्ली में हवनों की झड़ी लगा दी और मनोरंजन का चसका देने के लिए रंगबिरंगे नाच पेश कर दिए. पहले के राजा भी घरघर से सालाना जलसे के लिए पैसे वसूल करते थे. सब को राजा के दरबार में झुकने के लिए मजबूर करते थे. इस बार भी सारे मंत्री कामकाज छोड़ कर यमुना तट पर चरण छूने पहुंच गए--राजा के गुरु के. करोड़ों रुपया, पुलिस का तामझाम, नदी का बहाव रोकने वाले पुल वगैरह जो बने ओलिंपिक खेलों से भी गएबीते हैं, जहां आदमी की ताकत की आजमाइश होती है. विकास का नारा लगाने वाली सरकारें 2000 साल तक गुलामी में झोंकने वाली सोच के जिम्मेदार पुराणों, ग्रंथों, पाखंडों, हवनों से किसे बहला रही हैं? इन प्रपंचों से कपड़े नहीं बनेंगे, मकान नहीं बनेंगे, काम नहीं मिलेगा, पढ़ाई पूरी नहीं होगी, बीमारियां दूर नहीं होंगी. यह तमाशा और इस तरह के देशभर में तमाशे कहीं न कहीं होते रहते हैं. यह सब केवल दिमागी बीमारी पैदा करने वाला है और अफसोस है कि यह सरकारों के खुले समर्थन पर हुआ.

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