भारत सरकार का एनएसओ कंपनी से पेगेसस मेलकेयर सौफ्टवेयर खरीदना जिस से किसी को भी फोन में हो रही बातचीत ही नहीं आसपास की बातें भी सुनी जा सकती हैं, भारीभरकम विजय की ताल ठोकने वाली सरकार की अंदरूनी कमजोरी की पोल खोलना है. जैसे राम ने बाली को मार कर सुग्रीव को पटाया था और विभीषण को पटा कर रावण को मारा था वैसे ही भारत सरकार कहने को पूर्ण बहुत वाली, हर ङ्क्षहदू की चाहत, अच्छे दिन लाने वाली, 56 इंच की सरकार हो, असल में यह उस डालर की तरह है जो हर समय बचाव का रास्ता ढूंढ़ रहा हो.

कोर्ई वजह नहीं कि लोकप्रिय सरकारे को अपने विपक्षी नेताओं, आलोचकों, पत्रकारों के फोन सुनने पड़ें. यह आवश्यकता तब होती है जब खुद की स्थिति खराब हो और भेदियों के सामने वाले के कमजोर कोने ढूंढ़े जा सकें.

जब सरकार ने यह सौफ्टवेयर इजरायल से खरीदा था तब तक  सरकार की 2014 वाली भाव उतर चुकी थी और कट्टरपंथी ङ्क्षहदुओं के समर्थन से दशकों बाद पौराणिक नियमों से सरकार चलाने का सपना फीका पडऩे लगा था. तब कमजोर सरकार ने अपने हाथ अपनी ही जनता के खिलाफ मजबूत करने के लिए यह सौफ्टवेयर खरीदा और इसी के बल पर 2019 का चुनाव जीता और इसी के बल पर सुप्रीम कोर्ट से राम मंदिर की जगह पाई. पेगेसस का रोल दोनों में रहा है.

पेगेसस जैसा सौफ्टवेयर वैसे तो आंकतवादियों के खिलाफ गुप्तचरी के लिए बनाया गया था ताकि देश की जनता की रक्षा की जा सके पर भयभीत सरकार ने इसे अपनी ही जनता के खिलाफ इस्तेमाल किया, और वह भी ऐसे निहत्थों के खिलाफ जो न हाथ में हथियार रखते हैं न कोई ताकतवर पार्टी के दुश्मन है. गिरेपड़े से विपक्ष और बेहद कमजोर व अधिक्ता भक्त मीडिया के हिस्से पर पेगेसस का इस्तेमाल सरकार की हताथा और भय की निशानी है, एक मजबूत लोगप्रिय सरकार का मजबूत हथियार नहीं.

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