मूलत म्यांमार में बसे पर बंगाली बोलने वाले रोहंग्या शरणर्थी सारे भारत में फैले हुए हैं और छोटेमोटे काम कर के गुजारा कर रहे हैं. बांग्लादेश व म्यांमार दोनों इस से परेशान हैं क्योंकि ये इस्लाम को मानने वाले बिना देश के लोग कभी बांग्लादेश में होते हैं, कभी म्यांमार में और कभी भारत में. भारत सरकार ने इन्हें विदेशी मान कर खदेडऩे की नीति अपना रखी पर खदेड़ कर कहां भेजा जाए, बांग्लादेश और म्यांमार दोनों लेने को तैयार भी तो नहीं. इन्हें क्या बंगाल की खाड़ी में जहाजों….डाल कर पटक दिया जाए जहां ये मर जाएं.
बांग्लादेश कुछ ऐसा कर भी रहा है. उस ने सैंकड़ों रोहंग्या लोगों को एक दीप में बसा दिया है. वहां कुछ काम भी दिया है पर यह पक्का है कि ये लोग धीरेधीरे नौकाओं में वहां से निकल भागेंगे.
भारत सरकार ने जगहजगह पकड़ कर जेलों में बंद कर रखा है और एक याचिका में सुप्रीमकोर्ट ने भारत सरकार की बात मानी है कि बांग्लादेश या म्यांमार में इन के साथ जो भी सुलूक हो रहा हो, भारत सरकार इन्हें आजाद घूमने और बसाने नहीं दे रही तो गलत वहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने वह मानवता दिखाने से इंकार कर दिया जो पश्चिमी देशों के कितने ही देशों की सरकारों ने दिखाई है. सीरिया से भाग कर गए शरणॢथयों को उत्तरी यूरोप की सरकारें भगाना चाहती हैं पर वहां की अदालतों ने अपने देशों के कानूनों का ही हवाला दे कर कहा है कि जो लोग कहीं भी सताए जा रहे हों उन्हें शरण देना राज्य का कत्र्तव्य है.
यह न भूलें कि भारतीयों के साथ भी ऐसा होता है. करोड़ों भारतीय मूल के लोग दुनियाभर में फैले हैं और कभीकभार उन के खिलाफ लोकल लोग खड़े हो जाते हैं. उस समय वहां की अदालतें उन की सुरक्षा में खड़ी हो जाती है. भारत सरकार ने चाहे कभी इसे पसंद नहीं किया और भारत सरकार चाहे सही भी हो पर फिर भी कितने ही देशों ने पंजाबियों को शरण दी कि खालिस्तानी आंदोलन के कारण उन पर भारत में अत्याचार हो रहे हैं और उन्हें शरण चाहिए.
रोहंग्या लोगों को शरण न देना नैतिकता के खिलाफ है क्योंकि फिर न हम तिब्बतियों को शरण दे सकते हैं और न श्रीलंकाईयों को. एक देश को इतना उदार तो होना ही होगा कि दूसरी जगह के लोग यदि शरण मांग रहे है तो उन्हें रहने की जगह दी जाए. इतिहास गवाह है कि भारत ने पारसियों बोहराओ, चीनीयों, तुर्की, अरबों, अफगानों को लगातार शरण दी है. हर देश वैसे ही तरहतरह की नस्लों का मित्रित देश होता है. कोई भी शुद्ध भारतीय या अमेरिकी या पाकिस्तानी है ही नहीं.
भारत सरकार यहां सिर्फ ङ्क्षहदूमुसलिम कारणों से रोहंग्याओं के प्रति भेदभाव कर रही है जो सरकार की नीति का हिस्सा है पर देश की भूलभूत भावना की कट्टरता की पोल खोलता है. इस का खामियाजा हमें कब सहना पड़े कह नहीं सकते. ना तो जर्मनी ने यहूदियों साथ ऐसा सा कुछ किया था जो सैंकड़ों सालों से शरणार्थी बन कर रह रहे थे और उन के साथ न जाने क्या किया पर अंत में सही तर्क हिटलर को तहखाने में खुद को गोली मार कर मरना पड़ा था. सिर्फ 5-6 सालों के अत्याचारों के बाद.