सर्वोच्च न्यायालय ने सभी राज्य सरकारों को नोटिस दिया है कि वे नफरत पैदा करने वाले?भाषणों पर किस तरह से रोक लगा रही हैं या लगा सकती हैं. सर्वोच्च न्यायालय के पास यह मामला महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे के उन भाषणों के कारण पहुंचा जिन में वे गैरमहाराष्ट्रियनों के खिलाफ बोलते रहते हैं.
पहले बाल ठाकरे और अब राज ठाकरे मुंबई व महाराष्ट्र में दक्षिण भारतीयों और बिहारियों के खिलाफ भेदभाव फैलाने में हमेशा चर्चा में रहे हैं.
इसी तरह हिंदू व मुसलिम नेता अपने समर्थकों को पक्का करने के लिए एकदूसरे पर छींटाकशी करते रहते हैं. देश की एकता की परवा किए बिना केवल अपने हितों के लिए बैरभाव पैदा करना किसी के लिए भी अच्छा नहीं है क्योंकि अंतत: इस से कुछ हल नहीं होता.
पर सवाल है कि बैरभाव के बीज बोए कहां जाते हैं? ये न स्कूलों में बोए जाते हैं, न कालेजों में और न दफ्तरों में. इन सब जगह लोग हर तरह के लोगों के साथ काम करने को तैयार रहते हैं.
असल में भेदभाव मंदिरों, मसजिदों, चर्चों, गुरुद्वारों में सिखाया जाता है. वहां एक ही धर्म के लोग जाते हैं और सिद्ध करते हैं कि हम दूसरों से अलग हैं. धर्म के रीतिरिवाज ही एकदूसरे को अलग करते हैं. धर्म के नाम पर छुट्टियों में एक वर्ग घर पर बैठता है और दूसरा बढ़चढ़ कर पूजापाठ के लिए धर्मस्थल को जाता है. पहनावा भी धर्म तय करता है, जो अलगाव दर्शाता है. कुछ कलेवा बांधे टीका लगाए घूमते हैं तो कुछ टोपी पहनते हैं तो कोई पगड़ी बांधता है. संविधान की धज्जियां तो ये भेदभाव उड़ाते हैं.
जो नेता बैरभाव की बातें करते हैं वे यहीं से सीख कर आते हैं. अपने धर्मस्थलों की भीड़ देख कर उन का जोश चौकड़ी भरने लगता है. हम ही सब से अच्छे हैं, बाकी सब जाहिल. इन्हें रोकना है तो जेल भेजने की बात न करो, अलगाव की अफीम उगाने की खेती बंद करो. पर क्या यह हो सकेगा? न जाने क्यों, न केवल भारत बल्कि दुनियाभर में धर्म को मौलिक हक दिया गया है जबकि यह मौलिक झगड़े की जड़ है.