राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के इर्दगिर्द हो रहे विवाद के पीछे एक कड़वा तथ्य यह है कि भारत की रक्षा तैयारी देश की दूसरी तैयारियों की तरह बुरी तरह लचर व बिखरी हुई है. हमारी सेना हो, प्रशासन हो, शिक्षा हो, स्वास्थ्य सेवाएं हों, सभी हमारे किसी भी शहर की तरह हैं जहां कुछ इलाके ढंग से बने हैं, साफ हैं, व्यवस्थित हैं जबकि शेष शहर में पैचवर्क है, कहीं का रोड़ा कहीं का ठीकरा जमा कर बनाए गए आढ़ेतिरछे, गंदे, बदबूदार मकान हैं.
जहां पिछली सरकार 130 राफेल विमानों की बातचीत कर रही थी, वहीं नरेंद्र मोदी सरकार केवल 36 पर ही अटक गई और वे भी कब आएंगे, पता नहीं. इतने बड़े देश के लिए 36 नए विमान नाकाफी हैं क्योंकि पिछले मिग विमानों का बेड़ा लगभग समाप्त सा है और अब हमारे पास न तो अमेरिकी रक्षाकवच है, न रूसी यानी अगर किसी से युद्ध हो तो यही कहेंगे कि हम तो पहले जैसे हैं, आना है तो आओ और लूटपाट कर के ले जाओ. राफेल विमान दुनिया के अकेले लड़ाकू विमान नहीं हैं और कितने ही देशों के पास दूसरे विमानों की बड़ी तादाद है.
हर देश अपनी रक्षा के लिए अपने पड़ोसी से अच्छा विमान रखता है. चीन ने तो चेंगडू जे-10 बनाने शुरू कर दिए हैं. जे-20 हवाई जहाज भी हैं उस के पास. केवल 20 हजार कर्मचारियों वाली चीनी कंपनी दशकों से हवाई जहाज बना रही है. भारत की फ्रांस व दूसरे देशों पर रक्षा के लिए निर्भरता हमारी आर्थिक, सामाजिक और तकनीकी कमजोरी ही दर्शाती है. यह हमारे नेताओं की बेवकूफी का नतीजा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उम्मीद थी कि उन के फैसलों से किसी तरह का विवाद खड़ा न होगा पर उन का यह फैसला गले की हड्डी बन गया है.
यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. हो सकता है कि रक्षा के रहस्यों को जगजाहिर न होने देने के लिए सुप्रीम कोर्ट इसे रफादफा कर दे पर विपक्षी दलों को अगले 6 महीने तक यानी भावी आम चुनावों तक बोलने से कोई रोक नहीं सकता. एक ऐसी खरीद जिस पर देश को गर्व होना चाहिए था, एक काला धब्बा बन कर रह जाएगी. होना तो यह चाहिए था कि इस खरीद पर देश को गर्व होता कि न केवल लड़ाकू विमान आ रहे हैं, बल्कि उन के भारत में बनने का रास्ता भी साफ हो रहा है, पर असल में हमारा हाल यह है कि न केवल लड़ाकू विमान बल्कि हम से कुछ भी नहीं बन पा रहा चाहे साइकिल जैसी चीज हो या बड़े यात्री जहाज, सब बाहर से आ रहे हैं.
हम तो, बस, योग का निर्यात कर के गोबर का गुणगान करते फिर रहे हैं. सरकार ने एक तरह से ऊंची तकनीक वाले महंगे अरबोंखरबों वाले लड़ाकू विमानों की खरीद को मजाक बनवा डाला है. यह अब कुंभ के मेले की तरह बन गया है जहां हर कोई मैली गंगा को छू कर अपने को धन्य मानता है. देश की रक्षा को विदेशियों के हवाले करना अपनेआप में दयनीय व चिंतनीय है, ऊपर से उस में आरोपप्रत्यारोप लग रहे हैं तो इस से देश की बदनामी भी हो रही है.