हमारे गांवों और कसबों में किस तरह हिंसा कूटकूट कर भरी है, इस का एक नमूना हरियाणा के सोहना जिले के मंडावर गांव में देखने को मिला, जहां एक चीता गलती से पहुंच गया. देश में इस तरह के जंगली जानवर अब कम होने लगे हैं और अरबों रुपए उन को बचाने पर लगाए जाते हैं, पर लठैत, मूरख, मारपीट को धर्म मानने लगे गांव वालों को चीते पर अपनी मर्दानगी दिखाने का मौका मिल गया और उन्होंने उसे लाठियों से मारमार कर ऐसी जीत का जश्न मनाया, मानो इसलामाबाद फतेह कर लिया हो.
पुलिस और वन अधिकारी पहुंच गए थे और वन अधिकारी उसे बेहोश करने की कोशिश में थे, पर लाठियों और तलवारों से लैस युवाओं को तो अपनी मर्दानगी दिखानी थी और उन्होंने चीते को वही सजा दी, जो वे अपनी बहनबेटियों को किसी दूसरी जाति के लड़के के साथ भाग जाने पर देते हैं.
देशभर के गांवों में पढ़ाई पहुंच गई है, पर जो नहीं पहुंचा, वह है अच्छा व्यवहार. हमारे यहां हर गांव में 4-5 मंदिरमसजिद और गुरुद्वारे होंगे, पर हरेक में अपने दुश्मन का काम तमाम करने की ही शिक्षा दी जाती है. गांवों में गालियों के बदले गोलियां चलना आम है और अगर दूसरी तरफ का दूसरी जाति या दूसरे धर्म का हो, तो दंगे होने के आसार बन जाते हैं. जो तसवीरें चीते का पीछा करती दिखी हैं, उन में एक चीते के पीछे सैकड़ों की तादाद में लाठियां, फरसे उठाए भीड़ है. हर घर में मानो लाठियों का भंडार रहता है.
वन अधिकारी कहते हैं कि तमाशाइयों की भीड़ इस तरह की थी कि वे चीते को नशे में करने की गोली नहीं चला पाए. ये तमाशाई वही हैं, जो घर की बेटियों को पिता और भाइयों से मार खाते देखते हैं, जो औरतों को सरेआम अपने पतियों से पिटते देखते हैं, जो एक अकेली लड़की को छेड़े जाते दिखते हैं और इस सब हिंसा का मजा लेते हैं. यही मजा उस चीते को घेरने में मिल रहा था, जिस को बचाने के लिए सरकार ने हजारों एकड़ के जंगल खाली कराए हैं, ताकि मांसाहारी पशुओं को जीने की जगह मिले और वे खत्म न हो जाएं.