चुनावों में वादे करना आसान है पर उन्हें सुस्त, भारीभरकम, जिद्दी और ताकतवर नौकरशाही से पूरा करवाना लगभग असंभव है. नरेंद्र मोदी का वादा कि वे व्यापार करना आसान कराएंगे, एचडीएफसी बैंक के प्रमुख दीपक पारेख के अनुसार अभी तक यह वादा ही है और जमीनी तौर पर कुछ नहीं हुआ है. नौकरशाही अपने खुद के बनाए जालों को अभी तक समाप्त करने के मूड में नहीं है. वह हर तरह का रोड़ा अटकाती रहती है. भारत में व्यापार करना कभी आसान नहीं रहा. व्यापारियों को यहां हमेशा नीची नजरों से देखा जाता रहा है और शायद इसी कारण वे अपने पापों को धोने की कोशिश दूसरों से ज्यादा करते हैं. आप किसी भी मंदिर में चले जाएं, व्यापारियों के दान दिए पैसे के संगमरमर पर उन के खुदे नाम दिख जाएंगे. व्यापारी हर समय डरे रहते हैं मानो वे कोई सामाजिक या कानूनी अपराध कर रहे हैं. 1947 के बाद कांगे्रस ने उन के डर का भरपूर लाभ उठाया और सामाजिक जंजीरों के साथ नियमों, कोटों, परमिटों, लाइसैंसों व भिन्न करों के जाल में उन्हें फंसा दिया.

नरेंद्र मोदी ने वचन दिया था कि वे इन जंजीरों को खोल देंगे पर अभी तक प्रयास भी नहीं दिखा है. यह काम आसान भी नहीं. पर जनता ने भारतीय जनता पार्टी को कठिन काम करने के लिए ही तो वोट दिए थे. सरकारी तंत्र ने जनता को गुलाम बनाने के लिए बड़ी चतुराई से उन पर नियंत्रण रखने के लिए सुचारु रूप से काम करने के नाम पर सैकड़ों कानून बना रखे हैं जिन के चक्कर से निकलना केवल उन के बस में है जो ऊपर से नीचे तक रिश्वतखोरी को आसानी से हैंडल कर सकते हैं, उन्हें मालूम रहता है कि किस जगह कितना देने पर कितना बनेगा. ऐसे लोगों के लिए व्यवसाय करने में आने वाली कठिनाइयां वरदान हैं क्योंकि छद्म व्यापारिक पूंजीवाद और नियंत्रित शासन से पैसा बरसता है. ये लोग नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल जैसे सैकड़ों को निगल जाएंगे और डकार भी न लेंगे.

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