दिल्ली में एक 70 वर्षीय जोड़े को उन के घर में दिनदहाड़े घायल कर लूट लिया गया. यह जोड़ा उस घर में रहता है जिस में उन का बेटा भी ऊपरी मंजिल पर रहता है. लगता है अपराधी इस घर को पहचानते थे क्योंकि उन्होंने घंटी और कैमरे के तार काट दिए थे. वृद्ध दंपती ने चुपचाप लौकर की चाबी उन्हें दे दी थी पर जब उस में से केवल 10 हजार रुपए ही मिले तो एक लुटेरे ने गुस्से में पहले वृद्ध को घायल किया और फिर वृद्धा को.

वृद्धों के साथ इस तरह की घटनाएं बढ़ रही हैं. आज वृद्धों की संख्या भी बढ़ रही है. और लुटेरे जानते हैं कि समाज इतना निष्ठुर हो गया है कि कोई आवाज लगाए तो भी पड़ोस के लोग जमा न होंगे.वृद्धों से लूटपाट वैसे तो हमारे देश में ही नहीं दुनियाभर में होती है पर हमारे यहां दुख इस बात का भी है कि घनी बस्तियों में भी उन्हें राहत नहीं है. लुटेरे इतने बेरहम हैं कि वे कान की बालियां खींचते हुए महिला को होने वाले दर्द के बारे में तनिक भी नहीं सोचते.

जो वृद्ध अपने बच्चों से दूर अकेले मकानों में रहते हैं वे तो रोज रात को डरे हुए से सोते हैं और सुबह अपने को जिंदा पा कर खुश होते हैं. वृद्धावस्था का अकेलापन उन्हें इतना नहीं खलता, जितना यह डर कि उन्हें कौन, कब लूट ले. दिल्ली में हर साल सैकड़ों मामले ऐसे ही होते हैं. अब चूंकि हर मामले के चैनलों पर घंटों समाचार दिखाए जाते हैं, डर बढ़ता है घटता नहीं. इस समस्या का एक हल यह है कि कई वृद्ध जोड़े साथ रहें. वृद्धाश्रम में रहना तो अखरता है पर यदि 3-4 जोड़े एक मकान में साथ रहें तो सुरक्षा व साथ दोनों समस्याएं हल हो सकती हैं.

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