विवाह कर तन दिया है, तन ढकने का अधिकार थोड़े दिया है. यह कह कर मुंबई की एक युवती ने अदालत में तलाक की गुहार लगाई तो समझदार अदालत ने साफसाफ कह दिया कि ढकने का अधिकार तो पत्नी के पास ही है. पति कहे कि साड़ी ही पहनो, जींसटौप नहीं, तो भई, यह नहीं चलेगा.

सही है, साड़ी पहना कर क्या ज्यादा लाड़ दिखेगा. पत्नी क्यों अपने ऊपर उम्र के 8-10 साल फालतू के जोड़े. क्यों बहनजी कहलाए, क्यों मोटरसाइकिल पर एक तरफ बैठने को मजबूर हो, क्यों बिना जेब वाली साड़ी की वजह से पर्स लटका कर चले. पति को साड़ी इतनी अच्छी लगती है तो खुद भी सिर्फ धोती, बिना कमीज के, पहन कर घूमे न. यह क्या कि खुद तो ब्रैंडेड शर्ट पहनी, पैंट पहनी और पत्नी पर रौब कि साड़ी पहनो वरना पत्ता काटो. यानी साड़ी कोई फैवीकोल हो गया जिस से घर टूटते न हों.

साड़ी पहनने की जबरदस्ती करना क्रूरता है मारपीट करने के बराबर की. आज की पत्नी इसे सुनने को तैयार नहीं क्योंकि वह कंधे से कंधा मिला कर, हाथ में हाथ डाल कर चलने को आतुर है. वह पल्लू ठीक करती रहे, पति दूसरों को ताकता रहे, यह नहीं चलेगा. थैंक्यू डा. लक्ष्मी राव, मुंबई की पारिवारिक अदालत की जज साहिबा. एक सही फैसले के लिए थैंक्यू.

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