जोड़तोड़ की राजनीति शुरू हो गई है. सभी दल सत्ता में भागीदारी पाना चाहते हैं. भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को ताज दिलाने के लिए उन के साथी अब दूसरे दलों में सेंध लगाने लगे हैं जबकि बिहार में लालू यादव पर दोतरफा हमला हुआ. एक तो उन के साथी रामविलास पासवान, जो पहले अटल बिहारी वाजपेयी के साथ रह चुके हैं, को भाजपा के साथ मिलाया गया तो दूसरी ओर राष्ट्रीय जनता दल के कई विधायक नीतीश कुमार के खेमे में चले गए हैं.

दूसरे दलों में भी यह जोड़तोड़ जरूर शुरू होगा क्योंकि कांगे्रस का जहाज सब को डूबता नजर आ रहा है. उस के नेता राहुल गांधी बहुत कमजोर, फीके साबित हो रहे हैं. उन का बनावटी गुस्सा व नकली तेवर उन के भोलेपन को ढक नहीं पा रहे. राजनीति में तो खूंखारपन चाहिए जिस की टे्रनिंग भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों को धर्म के नाम पर अभी भी मिलती है.

आम जनता का रुख कांग्रेस व भाजपा दोनों के बारे में क्या है, इस का सही अंदाजा नहीं लगाया जा सकता. पिछले विधानसभा चुनावों में राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांगे्रस की करारी हार की वजह उस के राज्य स्तर के नेताओं का ढुलमुल रवैया था.  दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी ज्यादा सीटें और वोट ले कर भी आम आदमी पार्टी के आगे बौनी साबित हुई.

जो हाल कांगे्रस का मध्य प्रदेश व राजस्थान में है वही भारतीय जनता पार्टी का उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल, उत्तराखंड, उत्तरपूर्वी राज्यों व दक्षिण के चारों राज्यों में है. केंद्र में नरेंद्र मोदी अपने बल पर अटल बिहारी वाजपेयी से ज्यादा बड़ी शख्सीयत बनेंगे, यह सवाल बहुत बड़ा है. अटल बिहारी वाजपेयी खासे बेदाग, सौम्य, कुशल वक्ता, कवि, अनुभवी व्यक्ति थे और ये गुण नरेंद्र मोदी में न के बराबर हैं, फिर भी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा को 2004 में शिकस्त मिली.

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