आम आदमी पार्टी की सफलता से आकर्षित हो कर बहुत से नाम वाले लोग, जो राजनीतिक सत्ता व शक्ति का असर महसूस करते थे, आप में शामिल हो रहे हैं. जहां अरविंद केजरीवाल के लिए यह खुशी की बात है, वहीं यह सब से बड़ा सिरदर्द है क्योंकि ये नए लोग अपने चारों ओर महानता का बबूला लिए पार्टी में आ रहे हैं और उन की अपेक्षा है कि उन्हें तुरतफुरत ऊंचा स्थान, लोकसभा की सीट, कमेटियों में जगह मिल जाएगी.

एअर डेकन के संस्थापक कैप्टनजी आर गोपीनाथ या डांसर मल्लिका साराभाई ने आम जनता के लिए कभी सड़कों की धूल नहीं फांकी है. हां, वे सफल हैं, नाम वाले हैं तो क्या? हां, वे टीवी चैनलों पर घंटों बकबक कर सकते हैं तो क्या? क्या उन्होंने आम जनता की खाली बालटियों में पानी भरा है? क्या उन्हें बिजली का कनैक्शन दिलाया है? क्या धरना दिया है?

राजनीति मंचों पर चढ़ कर बोलने के लिए है तो नरेंद्र मोदी की पार्टी ही काफी है. फिर ‘आप’ की क्या जरूरत है. आम आदमी पार्टी को तो जरूरत है ऐसे नेताओं की जो यह खोज सकें कि आखिर इस मेहनतकश जनता का पैसा हड़प कौन रहा है. आखिर किस तरह से बहुमंजिले मकान ?ोपड़पट्टियों के बीच उग आते हैं.

आखिर क्यों देश के गांवों में आज भी जाति के नाम पर अत्याचार हो रहे हैं और क्यों औरतों को खापों जैसी परंपराओं को सहना पड़ रहा है? इन नए टोपी वालों ने इन के बारे में क्या किया है? यह ठीक है कि अरविंद केजरीवाल को फिलहाल देशभर में आम आदमी पार्टी को फैलाना है पर जब तक जनसेवा से तप कर आए लोग इस में शामिल न होंगे, इस का ध्येय पूरा न होगा. देश को एक और कांगे्रस या भारतीय जनता पार्टी नहीं चाहिए.

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