जब प्रधानमंत्री ने राष्ट्र को संबोधन में कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी तो भी किसानों के नेता बिना न्यूततम मूल्य की गारंटी और किसानों पर दर्ज हुए मुकदमे वापस लेने की जिद पर क्यों अड़े रहे? इसलिए कि वे जमीनी आदमी हैं और जानते हैं कि सरकारी मशीनरी कैसे हर अधिकार को तोड़मरोड़ कर नागरिकों को सिर्फ परेशान ही नहीं करेंगी, जेलों में सड़ा भी सकती है.

उन्हें भरोसा था कि बिना गारंटी के न्यूततम मूल्य की नीति कभी बनेगी नहीं और मुकदमे वापस नहीं हुए तो पुलिस अफसर किसानों और उन के नेताओं को वर्षों जेलों व अदालतों में घसीटेंगे. एक उदाहरण तेलंगाना का ले जहां सरकार भारतीय जनता पार्टी की भी नहीं है. वहां एक आदमी ने कुछ के साथ बेईमानी की, वादा किया कि पैसा लगाओ, दोगुना हो जाएगा. यह ऐसा गुनाह था जिस के लिए आमतौर पर मजिस्ट्रेट ही जमानत दे देता है और बाद में यदि पैसा न लौटाया, तो ही जेल में डाला जाता है.

पर न जाने क्यों उस पर भारीभरकम नाम वाले तेलंगाना प्रिवैंशन औफ डैंजरस एक्टिविटीज औफ बूटलैगर्स, ड्रग औफैंडर्स, गुंडाज, इममोरल ट्रैफिक औफैंडर्स, लैंड ग्रैबर्स, स्पूरियस सीड औफैंडर्स, इंसैक्तिसाइड औफैंडर्स, फर्टिलाइजर औफैंडर्स, फूड एडलट्रेशन औफैंडर्स, फेक डौक्यूमैंट औफैंडर्स, एसेंशियल कौमोडिटीज औफैंडर्स, फौरेस्ट औफेंडर्स, गेमिंग औफैंडर्स, सैक्सुअल औफैंडर्स, एक्सप्लोसिव सब्सटैंस औफैंडर्स, आर्म्स औफैंडर्स, साइबर क्राइम औफैंडर्स एंड व्हाइट कौलर औफैंडर्स और फाइनैंशियल औफैंडर्स एक्ट 1910 के अंतर्गत उसे प्रिवैंटिव डिटैंशन में ले कर जेल में बंद कर दिया गया.

आदेश में साफ था कि सारे गुनाह भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत प्रावधानों वाले किए गए हैं और उन से सार्वजनिक अव्यवस्था फैलने की कोई गुंजाइश न थी पर पुलिस को किसी के इशारे पर तो उसे बंद करना ही था और इसलिए ऊपर लिखे कानूनों का इस्तेमाल किया गया जिन में मजिस्ट्रेट के पास कोई जमानत देने का अधिकार नहीं है. कुछ लोगों को धोखा देकर उन से पैसे जमा करवा कर न लौटाना एक अनुबंध के न मानने का काम है जिस के लिए सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर किया जाता है और जीत जाने पर दूसरा पक्ष सपंत्ति कुर्क तक करा सकता है.

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