कोख को उधार देना अब एक फलताफूलता व्यवसाय बन गया है और सैकड़ों क्लिनिक ऐसी औरतें खोजने लगे हैं जो फर्टिलाइज्ड एग को 9 माह गर्भ में रख कर शिशु पैदा कर सकें. सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इस पर कानून के अभाव पर चिंता जताई और एक तरह से इशारा किया कि यह कुछ गलत है. यह गलत बिलकुल नहीं है. यह हर औरत का अपना निजी हक है कि वह अपने शरीर का इस्तेमाल कैसे करे. कानून केवल तभी बीच में आ सकता है जब जोरजबरदस्ती हो या धोखाधड़ी. इस के लिए मौजूदा कानून काफी हैं. औरतों को मिलने वाली हर आजादी को सामाजिक सिद्धांतों के खिलाफ माना जाना गलत है और कानून बना कर इंस्पैक्टरों, पुलिस, अदालतों, अनुमतियों, कागजी कार्यवाहियों के जंजाल में फंसाना एकदम मौलिक अधिकार के खिलाफ है. किराए की कोख का इस्तेमाल वे युगल कर रहे हैं जो किसी कारण बच्चे पैदा नहीं कर पा रहे. इन युगलों को हक है कि वे अपनी संतान पा सकें और जैसे आधुनिक तकनीक हजारों मील दूर बैठी घटना के चित्र सैकंडों में आप तक पहुंचा सकती है वैसे ही अगर चिकित्सा तकनीक सैकड़ों मील दूर बैठी औरत की कोख से बच्चे पैदा करा दे तो हर्ज क्या है!
सरकार जब भी कानून बनाती है उस में सरकारी कारिंदों को अधिकारों पर अधिकार दे देती है मानो वे देवदूत हों और आम आदमी दैत्यों के वंशज. सरकारी कानून अगर 2 आम व्यक्तियों की आपसी सहमति को नियंत्रित करने वाले ही हों तो ठीक है पर सरकार का कानून तो भारी दस्तावेजों का पुलिंदा बनवा देगा और सरोगेट मदरहुड की कीमत 4 गुनी कर देगा और बढ़ी हुई कीमत सिर्फ और सिर्फ सरकारी कारिंदों की जेब में जाएगी, प्रशासनिक खर्च के तौर पर या रिश्वत में. किराए पर कोख देना औरतों का हक है. यह डाक्टर का फर्ज है कि वह एक स्वस्थ औरत को ही इस के लिए तैयार करे. जब डाक्टर युगल से मोटी फीस लेगा तो वह नहीं चाहेगा कि बीमार औरत का चयन किया जाए. यह जिम्मा कि युगल जो अपना फर्टिलाइज्ड एग दे रहा है और सरोगेट मदर ठीक है, उन के अपने विवेक पर छोड़ दें. सरकार का पल्लू हर बात में खींचना गलत है. अदालतों को भी सरकार को हर काम में दखल देने के लिए कहना बंद करना चाहिए. वैसे ही हम पर सरकार बड़ी मेहरबान है और उस की मेहरबानी से आम आदमी कुचला जा रहा है.
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