विजातीय विवाहों पर आज भी देश में खासे बवाल हो जाते हैं. उत्तर भारत के गांवों की खापें तो इस मामले में बेहद बदनाम हो चुकी हैं. वे सम्मान रक्षा के नाम पर परिवार के सदस्यों को ही अपने बच्चों को खुद मारने को तैयार कर लेती हैं. अनुष्का शर्मा की फिल्म एनएच-10 एक से दिखते लेकिन अलग जातियों के पे्रमियों पर है जिस में भाई अपनी मां के कहने पर बहन को मार डालते हैं. जाति और वर्ण का यह भेदभाव भारतीय अपने साथ विदेश भी ले गए हैं और कई सदियों से भारत से बाहर रहने वाले परिवार भी गैरभारतीय से विवाह करने पर हल्ला मचा देते हैं. अफ्रीका में हजारों भारतीय मूल के परिवार बसे हैं पर उन में यदाकदा भारतीय युवती के गोरे से विवाह की बात को सुना जाता है पर काले युवक से विवाह होने में घर वाले भड़क जाते हैं.

अफ्रीकी देश केन्या के एक छोटे से शहर वेब्यू में भारतीय मूल के धनी परिवार की युवती सारिका पटेल ने गांव से आए काले युवक टिमोशी खामला से जब विवाह कर लिया तो भारतीय मूल का परिवार बिफर पड़ा. पहले तो उस ने विवाह रोकने की कोशिश की पर जब दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली तो लड़के पर, भारत की तर्ज पर, अगवा करने का झूठा आरोप लगा दिया. युवती ने हिम्मत दिखाई और पति के छोटे घर में शिफ्ट हो गई. पर लड़की के मातापिता ने लगातार दखल बनाए रखा. वहां अल्पमत में होने के कारण भारतीय मूल के परिवार वाले कानून तो हाथ में न ले पाए पर उस को मनाने के लिए बारबार उस के पास पहुंच जाते और आखिरकार पतिपत्नी के बीच खाई खड़ी कर ही दी. पतिपत्नी संबंध आपसी भरोसे और आदर पर निर्भर करते हैं और यदि उन में लगातार मिर्चें व कंकड़ डाले जाते रहें तो अच्छे अच्छों के भी दांत टूट जाते हैं. सारिका घर की सुविधाओं के अभाव, पैसे की कमी, पति की पहली पत्नी के बेटे को पालने के बोझ और परिवार की तरफ से लगातार बे्रनवाश्ंिग के आगे झुक गई और टिमोशी पर बुरे व्यवहार करने का आरोप लगा कर लौट गई.

जाति में विवाह का वायरस हमारे खून में अंदर तक बसा है और दुनिया भर में बसे भारतीय आज भी अपनों में शादी कर रहे हैं. गोरों से की शादी तो स्वीकार हो जाती है पर मुसलिम या काले से विवाह बिलकुल स्वीकार नहीं है. अमेरिका के हर शहर के मंदिर में 2-3 विवाह भारतीयों के हो जाते हैं पर अधिकांश अपनी बोली, अपनी जाति, अपनी धार्मिक स्थिति के चक्रव्यूह में फंसे होते हैं. ये विवाह चलते हैं पर इन में प्रेम नहीं होता, कोरा निभाना होता है. वर्ष 1972 में तत्कालीन राष्ट्रपति ईदी अमीन ने युगांडा से 80 हजार भारतीयों को निकाल दिया था क्योंकि वे अफ्रीकी समाज में घुलमिल नहीं रहे थे. भारतीय मूल का समाज एक भी लड़की को ईदी अमीन से विवाह करने को तैयार न कर पाया. दक्षिण अफ्रीका में भारतीय लड़कियों के चक्कर कालों से अब खासे चलने लगे हैं क्योंकि वे अब सत्ता में हैं, सफल हैं, पत्नी का खयाल रखने वाले हैं. फिर भी इस पर खासा विवाद उठता है. विदेशों में बस कर भी गोरी चमड़ी, ऊंचे वर्ण का मोह नहीं टूटा.

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