भारतीय जनता पार्टी और उस के नागपुर में बैठे सर्वेसर्वा शायद यह कभी स्वीकार न कर पाएंगे कि यह देश केवल पंडों और उन के अंधभक्तों का नहीं है. यह देश हमेशा की तरह मेहनतकश लोगों का है. जिन्होंने हर तरह के सामाजिक व आर्थिक भेदभाव सहते हुए लगभग जानवरों सी जिंदगी जी है और आज उन्हें यदि कुछ मिल रहा है तो पूजापाठ के बल पर नहीं, बल्कि उस टैक्नोलौजी के बलबूते जो सारी दुनिया को नया सुख और नई सुरक्षा दे रही है.
2014 में यदि नरेंद्र मोदी जीते और बाद में एकएक कर के चुनाव जीतते गए तो इसके पीछे उन के वे वादे थे जो इस देश की 95 फीसदी जनता के दर्द को छूते थे. यह जनता दो वक्त की रोटी, कपड़ा, मकान के साथ इज्जत चाहती है. और 2014 में नरेंद्र मोदी ने ‘सब का साथ सब का विकास’ व ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ जैसे नारों से यह वादा किया था. कांग्रेस के पास 2014 में सिवा भ्रष्टाचार के आरोपों से खुद को बचाने के अलावा कहने को कुछ न था.
अफसोस यह है कि जीतने के बाद नरेंद्र मोदी की पार्टी एकदम पलटी मार गई और उस ने ‘विकास’ की स्पैलिंग बदल कर ‘विनाश’ कर दी. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भजपा की सरकार ने नोटबंदी कर के करैंसी का विनाश कर दिया, उस ने जीएसटी लागू कर के व्यापार का विनाश कर दिया, उस के गुर्गों ने गौरक्षक बन कर कानून व्यवस्था का विनाश कर दिया, उसने लोगों की बातें सुनना बंद कर के लोकतंत्र में जरूरी संवाद का विनाश कर दिया, उस ने मीडिया पर दबाव डाल कर स्वतंत्र व निर्भीक पत्रकारिता का विनाश कर दिया. और सब से बड़ी बात, पिछले दरवाजे से आरक्षण विरोधी बातों को हवा दे कर उस विश्वास का विनाश कर दिया जो देश के शूद्रों व अछूतों (ओबीसी व एससीएसटी) में पनप रहा था कि वे बराबर के हो जाएंगे.