आशा के अनुसार, मोदी सरकार ने अपना धार्मिक एजेंडा बनाए रखा है. धार्मिक प्रचारप्रसार पर चाहे संवैधानिक पाबंदी हो, फिर भी सरकार करदाताओं के पैसे से पर्यटन के नाम पर तीर्थयात्राओं को सुगम बनाने के लिए भरपूर पैसा दे रही है और गंदे हिंदू तीर्थों को जनता के पैसे से दुरुस्त कराएगी. होना तो यह चाहिए कि तीर्थस्थानों को चंदे और दान में हुई उगाही से ठीक कराया जाए जैसे गैर धार्मिक पर्यटन स्थलों के साथ होता है पर यह फैसला तो मतदाताओं ने कर दिया था कि इस बार धर्म पर पैसा निछावर हो. अब शिकायत की गुंजाइश कहां. रही सरदार पटेल की मूर्ति पर 200 करोड़ रुपए खर्च करना तो यह मायावती के पदचिह्नों पर चलना ही तो है जिन्होंने लखनऊ और नोएडा में भव्य स्मारक जनता के पैसे से बनवाए. हां, इतना आश्चर्य जरूर है कि गांवगांव से लोहे के दान की कहानी का क्या हुआ?
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