भारत और चीन कुल मिला कर बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चाहे दूसरेतीसरे नंबर की जगह रखते हों पर आज भी दुनिया की बागडोर जी-7 देशों के हाथ में है जिन का एक ताजा सम्मेलन हिरोशिमा, जापान में हुआ जिस में भारत और वियतनाम को भी अतिथि के तौर पर बुलाया गया. आज अमेरिका की प्रतिव्यक्ति आय 65 हजार डौलर है और जरमनी में प्रतिव्यक्ति आय 60 हजार डौलर है जबकि चीन की अब मुश्किल से 14 हजार डौलर पर पहुंची है, वहीं, भारत की प्रतिव्यक्ति आय 2 हजार के आसपास ही लटकी हुई है.

चीन और भारत अपनी बड़ी आबादी के कारण बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हैं वरना आम चीनी और आम भारतीय की आय अमेरिकी, जरमन या ब्रिटिश से कहीं पीछे हैं और अभी 2-3 पीढिय़ों तक वे बराबरी नहीं कर पाएंगे. तेजी से बढऩे के बावजूद प्रति वर्ष अमीर देशों की प्रतिव्यक्ति आय चीन व भारत की प्रतिव्यक्ति आय से डौलरों में ज्यादा बढ़ जाती है.

चीन का तो मालूम नहीं लेकिन भारत में बड़ी व्यवस्था होने को ढोलनगाड़ों की तरह पीटा जा रहा है, यह भ्रामक है और गलत है. गलत इसलिए कि यह गीदड़ के नीले ड्रम में कूद जाने से अपने को कुछ अलग समझ लेने जैसा है. भारत सरकार के नेता व प्रशासन ही नहीं, जनता का एक वर्ग, जिस में उद्योगपति, विचारक, पैसे वाले आते हैं, खुद को अब बराबरी का समझने लगा है. उन सब को लगता है कि प्रगति के लिए दौड़ समाप्त हो गई है और अब प्रगति के लाभों का मजा लिया जाए. देश को दुरुस्त करने की भावना अब हर वर्ग से खत्म हो गई है. हर जगह बरबादी नजर आने लगी है. राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के लिए विशाल हवाई जहाज खरीदे गए हैं, विशाल नया महंगा संसद भवन बना है. प्रधानमंत्री का घर बन रहा है, हर कोने पर फाइवस्टार होटल बन रहे हैं, एक्सप्रैस वे बन रहे हैं जिन पर सिर्फ मंहगी कारें या एयरकंडीशंड बसें चल रही हैं, महंगे प्राइवेट अस्पताल बन रहे हैं, एयरकंडीशंड स्कूल बन रहे हैं, इनडोर स्टेडियम बन रहे हैं.

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