मैडिकल कालेजों में सीटों की बिक्री होती है और उन सीटों की भी जो हैं ही नहीं. इस देश में भ्रष्टाचार को इतनी मान्यता मिली हुई है कि आप किसी को भी कहें कि 10 लाख रुपए में कोई न हो सकने वाला काम हो जाएगा, तो वह मान जाएगा. इस मानसिकता का लाभ उठा कर शातिर लोग मैडिकल प्रवेश परीक्षाओं में असफल छात्रों के मातापिता के नामपते मालूम कर उन्हें कहते हैं कि विशेष कोटे वाली सीटें उन्हें एक रकम देने पर मिल सकती हैं. आमतौर पर मैडिकल की पढ़ाई के लालची छात्र इस तरह के झांसे में आ जाते हैं और 50-60 लाख रुपए तक खर्च कर डालते हैं. पुलिस ने जिन मामलों में छानबीन की वहां पता चला कि छात्र और अभिभावक को कालेज तक ले जाया गया, एक औफिस में बैठाया गया. वहां कंप्यूटर पर ऐडमिशन लिस्ट दिखाई गई. नकली कन्फर्मेशन पत्र दिया गया.

मातापिता और छात्र उस समय इतने पगलाए होते हैं कि वे साधारण छानबीन भी नहीं करते, क्योंकि वे जानते हैं कि वे खुद कुछ गलत कर रहे हैं. वे खुद को अपराधी मानते हैं और लुकाछिपी का खेल मिल कर खेलते हैं.

इस तरह की धांधली हर क्षेत्र में हो रही है और इस के लिए जिम्मेदार पूरा समाज है. हमारे यहां शिक्षा का ढांचा ही ऐसा खड़ा किया गया है कि इस में योग्यता, चुनौती, परिश्रम की कीमत कम है और शौर्टकट की ज्यादा. शिक्षा को कमाऊतंत्र बनाया गया है और तकनीकी शिक्षा को खासतौर पर. जो वास्तव में मेधावी हैं उन्हें स्थान मिल ही जाता है इसलिए किसी तरह रेलगाड़ी चल रही है पर सड़कों और रेलों की तरह पूरा अमला गंद और बदबू से दबा है. मैडिकल कालेज में प्रवेश और व्यापम तो नमूना मात्र हैं और केवल हवा में तिनके हैं जबकि हम पूरी रेतीली आंधी में घिरे हैं.

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