Election Commission Of India : चुनाव आयोग ने अपनी प्रैस कौन्फ्रैंस में एक ऐसा पैंतरा फेंका जो हर सरकारी कारिन्दा अकसर फेंकता है. यह पैंतरा है अपनी गलती होते हुए भी गलती न मानना बल्कि दूसरे को गलत ठहरा देना. गलत तो हमेशा नागरिक होता है और सरकार ने गलती की भी है तो यह नागरिक का दायित्व है कि वह उसे ठीक कराए, सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटे, फौर्म दर फौर्म भरे, दस्तावेज संलग्न करे.
देश के संविधान के मुताबिक, चुनाव आयोग का संवैधानिक कर्तव्य है कि वह सही ढंग से चुनाव कराए कि देश का कोई वोटर वोट देने से वंचित न रह जाए. लेकिन चुनाव आयोग एक आम टैक्स विभाग और पुलिस विभाग की तरह कहने लगा है कि उस का काम सुविधा देने का नहीं, बस, प्लेटफौर्म बनाने का है. उक्त प्लेटफौर्म में वह मनमाने नियमों के अनुसार नागरिक को जबरन धक्के खाते हुए मतदाता सूची में अपना नाम जुड़वाने के लिए फोर्स करता है.
17 अगस्त को चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार गुप्ता एक तानाशाह अफसर की तरह प्रैस को संबोधित करते हुए बारबार अपनी गलतियों को स्वीकार न करते हुए उन की जिम्मेदारी नागरिकों पर डालते रहे.
अगर मतदाता सूची चुनाव आयोग के अफसरों ने घरघर जा कर बनाई तो उस में गलती हुई ही क्यों? अगर गलती है तो चुनाव आयोग के अफसर क्यों न सजा पाएं? मतदान के हक को छीनने के अपराध को हत्या के अपराध की तरह क्यों न माना जाए, चाहे वह चुनाव आयोग के अफसर द्वारा छीना गया हो? देश की जमीन, नदियों, संपत्ति, पहाड़ों, पेड़ों, कंपनियों, न्यायालयों, रेलों आदि को चलाने की नीतियां बनाने के लिए उन की मालिक जनता चुनाव के जरिए नेताओं को सिर्फ प्रबंध करने का अवसर सौंपती है. चुनाव आयोग कोई संपत्ति का हस्तांतरण नहीं करता.
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