नोटबंदी के बेवकूफी वाले फैसले को सही ठहराने के लिए सरकार अब यह दावा कर रही है कि इससे ज्यादा लोग रिटर्न भरने लगे हैं. चूंकि बैंकों में लोगों को वर्षों संभाले पुराने रुपए जमा कराने पड़े थे और उन्हें उस वर्ष की आय दिखाना जरूरी था, यह तो सही है कि आयकर रिटर्नों की गिनती बढ़ गई पर इस से होता क्या है?
क्या सरकार की आय लाखों करोड़ रुपए में बढ़ी? सरकार का घाटा हर साल बढ़ रहा है जिस का मतलब है कि सरकार की आमदनी बढ़ी नहीं है और खर्च बढ़ गए हैं. फिर नोटबंदी पर सरकार को जनता से माफी क्यों नहीं मांगनी चाहिए. उलटे सरकार तो अकड़ कर कह रही है कि यह तो सर्जिकल स्ट्राइक थी.
नोटबंदी के बाद न तो कोई धन्ना सेठ सड़क पर आए, न लोगों के घरबार बिके, न दुकानों के शटर धड़ाधड़ बंद हुए. नोटबंदी मूर्खतापूर्ण कदम थी पर यह मानना पड़ेगा कि इस देश की अंधभक्त जनता को जैसे अपने देवीदेवताओं का कहर भी वरदान लगता है वैसे ही हिंदू कहलाने वाली सरकार केवल सही और सही करती दिखती है.
सरकारों से गलतियां हर जगह होती हैं. जापान ने कभी पर्ल हार्बर पर आक्रमण कर के द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका को निमंत्रण दे दिया और खमियाजा पूरे जापान को भुगतना पड़ा था. हाल में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरान ने यूरोपीय यूनियन में बने रहें या नहीं का जनमत संग्रह करा डाला जिस पर बेखबर जनता ने हां की मोहर लगा डाली और अब 2 साल से यूरोपीय यूनियन से कैसे निकलें के चक्कर में फंसें हैं. जनता का चाहे समर्थन जापान में भी था और ब्रिटेन में भी पर सरकार का फैसला नरेंद्र मोदी के फैसले की तरह महज गलत था.